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[ २५६ ] मेके कारणसें उपरोक शास्त्रोंके प्रमाणानुसार पर अवमें तथा भवोभवमें छठे महाशयजीको पूरे पूरा पश्चात्ताप करना पड़ेगा इस लिये प्रथमही पूर्वापरका विचार किये विना पश्चात्ताप करनेका कार्य करना छठे महाशयजी को योग्य नही था तथापि किया तो अब मेरेको धर्मबन्धु की प्रीतिसें छठे महाशयजीको यही कहना उचित है कि आपको उपरोक्त कार्योसें संसार वृद्धिके कारणसें यावत् भवोभवमें पश्चात्ताप करनेका भय लगता होवे तो. अच्छका पक्षपात और पण्डिताभिमान को दूरकरके सरलतापूर्वक मन वचन कायासें श्रीचतुर्विध संघसमक्ष उपर कहे सो आपके कार्योंका मिथ्या दुष्कत देकर तथा आलोचना लेकर और अपनी भूल पीशी ही जैनपत्र द्वारा प्रगट करके उपरोक्त उत्सूत्रभाषणके फल विपाकोंसें अपनी आत्माको बचा लेना चाहिये नही तो बड़ी ही मुश्किलीके साथ उपर कहे सो विपाकोंको भवान्तरमें भोक्ते हुए जरूर ही पश्चात्ताप करनाही पड़ेगा वहां किसीका भी पक्षपात नही है इस लिये आप विवेक बुद्धिवाले विद्वान् हो तो हृदयमें विचार करके चेत जावो मैंने तो आपका हितके लिये इतना लिखा है सो मान्य करोगे तो बहुत ही अच्छी बात है आगे इच्छा आपकी ;____ और आगे फिर भी छठे महाशयजी-अंग्रेज सरकारके कायदे कानून दिखाकर एक कहेगा दो मुनेगा-ऐसा लिखते हैं इस पर मेरेको बड़ेही अफसोसके साथ लिखना पड़ता है कि छठे महाशयजी साधु हो करके भी इतना मिथ्यात्वको वृथा क्यों फैलाते हैं क्योंकि सम्यक्त्वधारी
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