________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir
[ २५५ ] मुजब वर्तने वाले गच्छपक्षी दृष्टिरागी विचारे भोले जीवोंके कैसे कैसे हाल होवेंगे सो तो श्रीज्ञानीजी महाराज जानें-- ... उपरमें उत्सूत्र भाषक सम्बन्धी इतमा लेख लिखनेका कारण यही है कि उत्सूत्रभाषक पुरुष श्रीतीर्थपती श्री तीर्थङ्कर गणधरादि महाराजोंकी और अपने पूर्वजोंकी आशातना करने वाला और भोले जीवोंको भी उसी रस्ते पहुंचानेके कारणसे संसारकी वद्धि करता है जिसमें उसीकों पर भवमें तथा भवो भवमें नरकादि अनेक विडम्बना भोगनी पड़ती है इसलिये महान् पश्चात्तापूका कारण बनता है और इस भवमें भी उत्सूत्र भाषकको अनेक उपद्रव भोगने पड़ते है, तैसे ही छठे महाशयजी श्रीवल्लभविजयजीने भी उत्सूत्र भाषण करके श्रीजिनेश्वर भगवान् की आज्ञाके आराधक पुरुषोंको मिथ्या आजा. भङ्गका दूषण लगाकर जैनपत्रमें प्रसिद्ध कराके झगड़ेका मूल खड़ा किया और बड़े जोरके साथ पुनः जैनपत्र में फैलाया जिससे आत्मार्थी निष्पक्षपाती सज्जनपुरुष तथा अपने [छठे महाशयजीके ] पक्षधारी श्रीतपमच्छके सज्जन पुरुष और खास छठे महाशयजीके मण्डलीके याने श्रीन्यायाम्भोनिधिजीके परिवार वाले भी कितने ही पुरुष छठे महाशयजी श्रीवल्लभविजयजीपर पूरा अभाव करते है कि ना हक वृथा जो संपसे कार्य होतेथे जिसमें विघ्नकारक झगड़ा खड़ा किया है इसलिये छठे महाशयजीको इन भवमें भी पूरे पूरा पश्चात्ताप करनेका कारण होगया है तथा करते भी है।
और उत्सूत्र भाषण करके दूसरों को मिथ्या दूषण लगा.
For Private And Personal