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[ २४७ ] निकले होठे,-अर्थात् जिस आदमीके जैसी बात दिलमें होवे उस आदमीसें वैसेही अन्तरकी बातके सचकरूप शब्द करके सहित भाषा निकलती है तैसेही छठे महाशयजीने भी मानु अपनी आत्मामें रहनेवाले गुणों के सचक शब्द लिखके प्रसिद्ध किये है सो वह द्रव्य शब्दके भाव गुण छठे महाशयजी श्रीवल्लभविजयजीमें अवश्य ही दिखते हैं सोही पाठकवर्गकों दिखाता हुं और साथ साथमें छठे महाशयजीकी अन्याय कारक अन्यान्य बातोंकी समीक्षा भी करता हुं ;
छठे महाशयजीने ( गाम वसे वहाँ भङ्गी चमारादि अवश्य होते हैं ) यह अक्षर लिखे हैं इस पर मेरेको इतना ही कहना उचित हैं कि श्रीजिनेश्वर भगवान्की आज्ञाके आराधन करनेवाले जो सज्जन है सोही मानों गाम वसता है उसी गामरूपी श्रीजिनशासनमें उत्सत्र भाषक निन्दकादि भङ्गी चमारोंकी तरह उक्त महाशयजी आदि वसते हैं सो उस गामकी निन्दारूप मलिनताकों उठाते हुए भी आप पवित्र बनना चाहते है सो कदापि नही बन सकते हैं और आगे फिर भी लिखा हैं कि ( अच्छी अच्छी बातोंकी होशियारीके साथमें बुरी बुरी बातोंकी होशियारी भी आगे ही आगे बढ़ती हुई नजर आती हैं) छठे महाशयजीके इन अक्षरों पर मेरेको यही कहना पड़ता है कि इस अंग्रेजी राज्यमें कलाकौशल्यता और न्यायशीलताके कारण श्रीजिनेश्वर भगवान्की आज्ञारूपी अच्छी अच्छी होशियारीको वृद्धिके साथ साथमें बुरी बुरी होशियारीकी तरह प्रथम कदाग्रहके बीज लगानेवाले
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