________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir
[ २२६ ]
व्याख्या की गिनती में अधिक मासको प्रमाण किया है और अधिक मासकी उत्पत्तिका कारण कार्य्यादि गिणित पूर्वक श्रीमलयगिरिजी महाराजने श्रीज्योतिषकर ण्डपयनाकी वृत्ति में विस्तार किया है इस ग्रन्थको न्यायरत्नजीनें अनेक वार देखा है और श्रीअनन्त तीर्थङ्कर गणधरादि सर्वज्ञ महाराजोंने अधिक मासको गिनती में प्रमाण किया है सो अनेक शास्त्रोंके पाठ प्रसिद्ध है और खास न्यायरत्नजीनें मानवधर्म संहिता पुस्तकके पृष्ठ २४ की पंक्ति २० वी से २२शा पंक्ति तक ऐसे लिखा है कि ( उत्सूत्र भाषण समान कोई 'वड़ा पाप नही सब क्रियाधरी रहेगी उक्त पाप दुर्गतिको ले जायगा जमालिजीनें गौतम गणधर जैसी क्रिया किन लेकिन देख लो किस गतिको जाना पड़ा ) और पृष्ठ ५८८ की पंक्ति १४-१५ में फिर भी लिखते हैं कि ( सर्वज्ञ प्रणीत शास्त्र के पाठको उत्थापन करेगा उसका निर्वाण होना मुश्किल है) इस लेख पर सें सज्जन पुरुषोंकों विचार करना चाहिये कि - श्री अनन्त तीर्थङ्कर गणधरादि सर्वज्ञ महाराजोंने अधिकमास को गिनती में प्रमाण किया हुवा है सो अनेक शास्त्रोंके पाठ प्रसिद्ध है तथापि पक्षपातके जोरसें न्यायरत्तजीनें अनन्ततीर्थङ्कर गणधरादि सर्वज्ञ भगवानोंके विरुद्धार्थमें उत्सूत्र भाषण करनेके लिये सर्वज्ञ प्रणीत अनेक शास्त्रोंके पाठोंकों उत्थापन करके उत्सूत्र भाषणका बड़ा भारी पाप दुर्गतिको देनेवाला तथा संसार में रुलानेवाला अपना लिखा हुवा उपरका लेखको भी सर्वथा भूल गये इसलिये मेरेकों बड़ा खेद उत्पन्न हुवा कि न्यायबजी जानते हुए भी उत्सूत्र भाषणरूप
For Private And Personal