________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir
[ २२९ ]
नियम नही रहता है याने हर अधिक मासके हिसाबसे पश्चादानुपूर्वी अर्थात् आषाढ़, ज्यैष्ठ, वैशाख, चैत्र, फाल्गुन, माघ, पौषादि हरेक मासोंमें होते है इसलिये मुसलमानोंके ताजिये फिरनेका दृष्टान्त लिखके श्रीपर्युषणापर्व फिरनेका दिखाना सो पूरी अज्ञताका कारण है— इसलिये श्रीसर्वज्ञ कथित श्रीपर्युषण पर्व फिरनेका और अधिक मासको गिनती में निषेध करने के संबन्धी मुसलमानोंके ताजियांका दृष्टान्त उत्सूत्र भाषणरूप होनेसें न्यायरत्नजीको लिखना उचित नही है इस बातको सज्जन पुरुष उपरके लेखसे स्वयं विचार सकते है ;
और आगे फिर भो न्यायरत्नजीनें अपनी कल्पनाऐं लिखा है कि ( दूसरा यह भी दूषण अयगा कि वर्षभर में जो तीन चातुर्मासिक प्रतिक्रमण किये जाते है उसमें पचमासिक प्रतिक्रमणका पाठ बोलना पड़ेगा शीतकालयें और उष्णाकालमें तो अधिक महिना गिनती में नहीं लाना और चौमासेमें गिनती में लाकर श्रावणमें पर्युषणा करना किस न्याय की बात हुई ) इस लेख से न्यायरत्नजीनें जैनशास्त्रों का तथा अधिक मासको गिनती में प्रमाण करने वालोंका तात्पर्य्यको समके बिना दूसरा दूषण लगाया सो मिथ्याभाषण करके बड़ी भूल करी है क्योंकि जिस चौमासेमें अधिक मास होता है उसीको अभिवर्द्धित चौमासा कहा जाता है संवत्सरवत् अर्थात् जिस संवत्सर में अधिक मास होता है उसीको अभिवर्द्धित संवत्सर कहते है इसी ही न्यायानुसार अधिक मास होवे तब उस चौमासे में पञ्चमास तथा संवत्सर में तेरह मासका पाठ सर्वत्र प्रतिक्रमण में अवश्य
For Private And Personal
-