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श्रीजिनाजाके आराधक सत्यग्राही सज्जन पुरुषोंसे मेरा यही कहना है कि जैसे पूर्वोक्त तीनों महाशयोंने अपने विद्वत्ताकी कल्पित बात जमानेके लिये पूर्वापर विरोधी तथा उटपटाङ्ग और श्रीतीर्थङ्कर गणधरादि महाराजोंके विरुद्ध और अनेक शास्त्रोंके पाठोंको उत्यापन करके अपना अनन्त संसार वृद्धिका भय नही किया तैसें ही चौथे महाशय न्यायाम्भोनिधिजीने भी तीनों महाशयोंका अनुकरण करके पूर्वापर विरोधी तथा उटपटाङ्ग और प्रीतीर्थङ्करगणधरादि महाराजोंके विरुद्ध उत्सूत्र भाषण करने में कुछ भी भय नही किया परन्तु मैंने भी भव्य जीवोंके शुद्ध श्रद्धा होनेके उपगारकी बुद्धिसे शास्त्रानुसार युक्तिपूर्वक सत्य बातोंका देखाव करके कल्पित बातोंकी समीक्षाकर दिखाइ है उसीको पढ़के सत्य बातका ग्रहण और असत्य बातका त्याग करके अपनी आत्माका कल्याण करने में उद्यम करेंगे
और दृष्टिरागका पक्षपातकों न रखेंगे यही मेरा पाठक घर्गको कहना है ;___ और न्यायाम्भोनिधिजीके लेख पर अनेक पुरुष संपूर्ण रीतिसें पूरा भरोसा रखतेथे कि न्यायाम्भोनिधिजी जो लिखेंगे सो शास्त्रानुसार सत्यही लिखेंगे ऐसा मान्यकरके उन्होंसे पूज्यभाव बहोत पुरुषोंका है। और मेरा भी था परन्तु शास्त्रों का तात्पर्य्य देखने से जो जो न्यायांभोनिधि जीने महान् उत्सूत्र भाषणरूप अमर्थ किया सो सो सब प्रगट होगया जिसका नमुनारूप पर्युषणा सम्बन्धी न्यायाम्भो. निधिजीने कितनी जगह प्रत्यक्ष मिथ्या और उत्सूत्र भाषण किया है सो तो उपरकी मेरी लिखी हुई समीक्षा पढ़ने में
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