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[ २१४ ] श्रीवल्लभ विजयजीके नामकी समीक्षामें लिखने में आवेगा, इसलिये शुद्ध समाचारीकी पुस्तकके पृष्ठ १५७ का पाठ सम्बन्धी पूर्वपक्ष उठाकर उसीका उत्तरमें अधिक मासकी गिनती निषेध करना सो तो प्रत्यक्ष न्यायाम्भोनिधिजीका शास्त्र विरुद्ध उत्सूत्र भाषण रूप है ;
और दूसरा यह भी सुन लीजीये कि-श्रीनिशीथ चूर्णि कार श्रीजिनदास महत्तराचार्यजी पूर्वधर महाराजने और श्रीदशवकालिक सूत्रके प्रथम चूलिकाकी वृहद्घत्तिकार सुप्रसिद्ध श्रीमान् हरिभद्र सूरिजी महाराजने अधिकमासको कालचूलाकी उत्तम ओपमा गिनती करने योग्य लिखी है तथापि इन महाराजके विरुद्धार्थ में न्यायाम्भोनिधिजी इतने विद्वान् होते भी अधिक मासको कालचूला मानते भी निषेध करते है सो बड़ी ही विचारने योग्य आश्चर्य की बात है ;___ और दो श्रावण होनेसे भाद्रपदतक ८० दिन होते है तथा दो आश्विन होनेसे कार्तिक तक १०० दिन होते है तथापि ८० दिनके ५० दिन और १०० दिनके १० दिन न्यायाम्भोनिधिजीने अपनी कल्पनासें काल वूलाके बहाने बनाये सो कदापि नही बन सकते है इसका विस्तार तीनों महाशयों की और खास न्यायाम्भोनिधिजीकी भी समीक्षा में अच्छी तरहसे उपरमें छप गया है सो पढ़के सर्वनिर्णय कर लेना:-और दो श्रावण मास होनेसें दूसरे प्रावण मास प्रतिबद्ध पर्युषणा पर्व है इसलिये दो श्रावण होते भी भाद्रव मासकी भ्रान्ति करना शास्त्र विरुद्ध है और अब न्यायाम्भोनिधिजीके नाम की पर्युषणा सम्बन्धी समीक्षा के अन्त में
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