________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir
[ २०८ ]
कणियर तो सबीही मासोंमें फूलती है और आंबे भी सबीही मासोंमें फूलके फलते है सो कलकत्ता, मुंबई वगैरह शहरोंके अनेक पुरुष जानते है । और कणियर तो उत्तम जातिकी और अंब तुच्छ जातिका कारण अपेक्षा से ठहरता है इसका विशेष खुलासा सातवे महाशयको समीक्षामें करने में आवेंगा और आगे फिर भी श्रीआवश्यक निर्युक्ति की गाथा पर न्यायाम्भोनिधिजीनें अपनी चातुराई को प्रगट feat है कि ( अब देखीये हे मित्र यह अच्छी जातिकी वनस्पति भी अधिक मासको तुच्छही जानके प्रफुल्लित नही होती है)
इस उपरके लेखकी समीक्षा पाठकवर्गकों सुनाता हुं कि न्यायांभोनिधिजी अच्छी जातीको वनस्पतिको अधिक मासको तुच्छही जानके प्रफुल्लित नही होनेका ठहराते हैं। इस न्यायानुसार तो न्यायांभोनिधिजी तथा इन्होंके परिवारवाले भी जो अच्छी जातिकी वनस्पतिका अनुकरण करते होवेंगे तब तो अधिक मासको तुच्छही जानके खाना, पीना, देव दर्शन, गुरु वन्दन, विनय, भक्ति, वृद्धादिककी वैयावच्च, धर्मोपदेशका व्याख्यान, व्रत, प्रत्याख्यान, देवसी, राई, पाक्षिक प्रतिक्रमणादि कार्य्य करके अपनी आत्माकों पापकृत्योंसे आलोचित देखकरके हर्षसें प्रफुल्लित चित्तवाले नही होते होवेंगे तब तो उपरका लेख वनस्पति सम्बन्धीका लिखना ठीक हैं और उपर कहे सो कृत्योंसे आप हर्षित होते होवेंगे तब तो वनस्पतिकी बातको लिखके भोले जीवोंको श्रीजिनाज्ञारूपी रत्नसे गेरनेका कार्य करना सो प्रत्यक्ष मिथ्यात्वका कारण है, और विद्वान् पुरुषोंके आगे हास्यका हेतु है सो बुद्धिजन पुरुष विचार लेना ;
-
For Private And Personal