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[ २९० ] मिथ्या हो जावेगा इसलिये पूर्वापर विरोधी (वित्तम्बादी) वाक्य लिखनेका जो विपाक श्रीधर्मरत्नप्रकरणकी वृत्तिमें कहा है (सो पाठ इसी ही पुस्तकके पृष्ठ ८६ । ८७।८८ में उप गया है) उसीके अधिकारी न्यायाम्भोनिधिजी ठहर गये सो पाठकवर्ग विचार लेना;
और अधिकमासकों तुच्छ न्यायाम्भोनिधिजी ठहराते हैं सो तो निःकेवल श्रीतीर्थङ्कर गणधरादि महाराजोंकी आशातनाका कारण करते है क्योंकि श्रीतीर्थङ्करादि महाराजोंने अधिकमासको उत्तम माना है (इसका अधिकार इसी ही पुस्तकमें अनेक जगह वारम्वार छपगया है और आगे भी छपेगा ) इस लिये अधिकमासको तुच्छ न्यायाम्भोनिधिजी को लिखना उचित नहीं था सो भी पाठकधर्म विचार लो;. और आगे फिर भी जैन सिद्धान्त समावारीकी पुस्तकके पृष्ठ ९३ की प्रथम पंक्ति से १२ वी पंक्ति तक ऐसे लिखा है कि (हे परीक्षक और भी युक्तियां आपको दिखाते है कि यह जगतके लोक भी बारामासमें जिस जिस मासके साथ प्रतिबद्धकार्य होते है सो तिस तिस मासमें अधिक मासको छोड़के अवश्य ही करते है जैसे कि आशोज मास प्रतिबद्ध दीवालीपर्व अधिक मासको छोड़के आसोज मासमें ही करते है और आम्बलकी ओली छ मासके अन्तरमै करनेको भी अधिक मासको छोड़के आसोज भासमें और चैत्रमासमें करते है ऐसे अनेक लौकिक कार्य भी अपने माने मासमें ही करते है परन्तु आगे पीछे कोई भी नही करते है तो हे मित्र भाद्रवमास प्रतिबद्ध ऐसा परम पर्युषणा
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