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[ १८ ] तो दूसरे श्रावण शुदीमें और भाद्रव बढ़े तो प्रथम भाद्रव शुदीमें आषाढ़ चौमासेसें ५० में दिनही पर्युषणा करना परन्तु ८० अशीमें दिन नही करना ऐसा लिखके पृष्ठ १५५ में अपनेही गच्छके श्रीजिनपति सूरिजी रचित समाचारीका प्रमाण दिया है ) इन अक्षरोंको न्यायाम्भोनिधिजी लिखते हैं और उपरोक्त श्रीखरतरगच्छके पूर्वाचार्योंके ग्रन्थोंका दूसरे प्रावणमें पर्युषणा करने सम्बन्धी पाटोंको भी जानते हैं तथापि ( अधिक मास होवे तो श्रावण मासमें पर्युषणा करना ऐसा तो तुमारे गच्छवाले भी नही कह गये हैं) इतना प्रत्यक्ष मिथ्या लिखके अपना महाव्रत भङ्गके सिवाय और क्या लाभ उठाया होगा सो पाठकवर्ग विचार लेना--- ___ और तीसरा ( देखो सन्देहविषौषधी ग्रन्थमें भी भाद्रव मासहीके विशेषण करके कहा है परन्तु ऐसा नही कहा है कि अधिक मास होवे तो श्रावण मासमें पर्युषणा करना ऐसा पर्युपणापर्वके साथ विशेषण नही दिया है) यह लिखा है तो भी मायावृत्ति से प्रत्यक्ष सिध्या लिखा है क्योंकि श्री जिनप्रारिजीने श्रीसन्देहविषौषधी वृत्तिमें खुलासा पूर्वक दो श्रावण होने से दूसरे श्रावणभे पर्युषणा करनी कही है जिसका पाठ अध्यजीवोंको निःसन्देह होनेके लिये इस जगह लिरा दिलाता हुं श्रीसन्देहविधौषधी वृत्तिके पृष्ठ ३० और ३१ का तथाच तत्पाठः---- ___ साम्प्रतं पर्युषणा समाचारी विवक्षुरादौ पर्युषणा कदा विधेयेति श्रीमहावीरस्तद्गणधरशिष्यादीन् दृष्टान्तेनाह तेणं कालेणमित्यादि। वासाणंति। आषाढ़चतुर्नाहकदिनादारभ्य सविंशतिरात्रेमासे व्यतिक्रान्ते भगवान् पज्जोसवे
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