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विषौषधी वृत्ति में और श्रीविधिप्रपामें खुलासाके साथ मासद्धिकी गिनतीसें वर्तमानमें पचास दिने पर्युषणा कही है सो दूसरे श्रावणमें अथवा प्रथम भाद्रपदमें पर्युषणा करनी यह प्रसिद्ध बात है और न्यायाम्भोनिधिजो खास करके श्रीमन्देहविधौषधी वृत्तिका और श्रीविधिमया ग्रन्थका उपरोक्त पर्युषणा सम्बन्धी पाठको अच्छी तरह जानते थे क्योंकि नीविधिप्रपा ग्रन्थका पाठ खास आपने चतुर्थ स्तुति निर्णयः पुस्तकके पृष्ठ ८३। ८४ । ८५ में लिखा है।
और मैंने जो उपरमें श्रीविधिप्रपा ग्रन्थका पाठ पर्युषणा सम्बन्धी लिखा हैं उसी पाठके पहलो पंक्तिका पाठ दोनु जगहसे काटकरके अधूरा ग्रन्थकार महाराजके विरुद्धार्थने उत्सूत्र झायणरूप और श्रीखरतरगच्छके तथा दूसरे भोले श्रावकोंको भ्रम में गेरनेके लिये न्यायाम्भोनिधिजीने जैन सिद्धान्त समाचारीकी पुस्तकके पृष्ठ ८२ के अन्तमें लिखा है (जिसका खुलासा आगे करनेमें आवेगा) इससे पर्युषणा सम्बन्धी उपरका पाट न्यायाम्भोनिधिजी जानते थे तथापि अपनी मिथ्या बात रखने के लिये ( अधिकमास होवे तो श्रावण मासमें पर्युषणा करना ऐसा तो तुमारे गच्छवाले भी नही कह गये है ) यह वाक्य और सन्देहविषौषधी ग्रन्थमें भी ( ऐसा नही कहा कि अधिक मास होवे तो श्रावणमासमें पर्युषणा करना ) यह वाक्य म्यायाम्भोनिधिजी माया वत्तिसें प्रत्यक्ष मिथ्या कैसे लिख गये होंगे सो मेरेकों बड़ाही अफसोम है ;-इस लिये मेरे कों इस जगह लिखना पड़ता है कि श्रीजिनप्रभ सूरिजीने श्रीसन्देह विषौषधी वृत्तिमें तो कदाग्रही और सन्देहकारी
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