________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir
[ १९४ ]
पर्व कैसे करनेकी सङ्गति होगी ? और रत्नकोपाख्य ज्योतिःशास्त्र विषे भी ऐसा कहा है। यथा - 'यात्राविवाहमण्डन, मन्यान्यपि शोभनानि कर्माणि ॥ परिहर्तव्यानि बुधैः, सर्वाणि नपुंसके मासि ॥ १ ॥
भावार्थ: यात्रा मण्डन, विवाहमण्डन, और भी शुभकार्य्य है सो भी पण्डित परुषोंमें सर्व नपुंसके मासि कहने सें अधिक मास में त्यागने चाहीये। अब देखीये । इस लेख सें भी अधिक मासमें अति उत्तम पर्युषण पर्व करनेकी सङ्गति नही हो सकती है । ]
ऊपरके न्यायाम्भोनिधिजीका लेखकी समीक्षा करके पाठकवर्गको दिखाता हूं कि ( पृष्ठ १५० में नारचन्द्र ज्योतिष ग्रन्थका प्रमाण दिया है सो तो होरीके स्थान में वोरीका विवाह कर दिया है ) इन अक्षरोंको लिखके जो शुद्धसमाचारीके पृष्ठ १५० में नारचन्द्र ज्योतिषका श्लोक है उसी को न्यायांभोनिधिजी निषेध करना चाहते हैं सो कदापि नही हो सकता है क्योंकि उसी लोकका मतलब सत्य है देखो शुद्धसमाचारीके पृष्ठ १५० में नारचन्द्रके दूसरे प्रकरणका ऐसा श्लोक है यथा--रविक्षेत्रगते जीवे, जीव क्षेत्रगते रथौ । दीक्षां स्थापनां चापि प्रतिष्ठा च न कारयेत् ॥ १ ॥ इस श्लोक लिखने का तात्पर्य ऐसा है कि वादी शङ्का करता है कि अधिकमास में शुभकार्य्य नही होते हैं तो फिर पर्युपणापर्व भी शुभकार्य्य अधिकमास में कैसे होवे इस शङ्काका समाधान शुद्धसमाचारीकार पं० प्र० यतिजी श्रीरायचन्द्रजी ऐसे करते हैं कि अधिक मासके सिवाय भी 'रविक्षेत्रगते जीवे, याने सूर्य्यका क्षेत्रमें गुरुका जाना होवें
For Private And Personal