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[ १५ ] अर्थात् सिंहराशि पर गुरुका आना होवे तब सिंह गुरु सिंहस्थ तेरह मास तक कहा जाता है उसी में और 'जीवक्षेत्र गते रवी, याने गुरुका क्षेत्रमें सूर्यका जाना होवे अर्थात् गुरुका क्षेत्रमें सूर्य धन और मीन राशिपर पौष और चैत्र मासमें आता है तब उसीको मलमास कहे जाते हैं उसीमें अर्थात् सिंहस्थ का और मलमासका ऐसा योग बने तब गृहस्थको दीक्षा देना तथा साधुको सूरि वगैरह पद में स्थापन करना और प्रतिष्ठा करनी ऐसे कार्य नही करना चाहिये क्योंकि एसे योगमें दीक्षादि कार्य करनेसे इच्छित फलप्राप्त नही हो सकता है इसलिये उपरोक्तादि अनेक कारणयोगे मुहूर्त के निमित्त कारणसे जो जो कार्य करने में आते हैं सो निषेध किये हैं परन्तु आत्मसाधनका धर्मरूपी महान् कार्य तो बिना मुहूर्त्तका होनेसे किसी जगह कोई भी कारणयोगे निषेध करने में नहीं आया है और अधिक मासमें धर्मकार्य पर्युषणादि करनेका कोई शास्त्रमें निषेध भी नही किया है इसलिये अधिक मासादिमे धर्मकार्य अवश्यही करना चाहिये यह तात्पर्य शुद्धसमाचारी कारका जैनशास्त्रानुसार युक्तिपूर्वक न्यायसम्मत होनेसे मान्य करने योग्य सत्य है इसलिये निषेध नहीं हो सकता है तथापि म्यायांभोनिधिजी अपनी कल्पित बातको स्थापनेके लिये शुद्धसमाचारीकारकी सत्य बातका निषेध करते हैं सोभी इस पंचमें कालके न्यायके समुद्रका नमुना है और शुद्धसमाचारीकार पं० प्र० यतिजी श्रीराय - चन्द्रजी थे, इसलिये ( हीरीके स्थानमें वीरीका विवाह कर दिया है) यह अक्षर न्यायांभोनिधिजीको बिना विचार
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