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[ १८४ ] समझना क्योंकि हम अधिक मासको कालचूला मानते है) इन अक्षरोंको लिखके न्यायाम्भोनिधिजी दो श्रावण होनेसे भाद्रपद तक ८० दिन होते हैं जिसमें अधिक मासको मिनती में छोड़कर ८० दिनके ५० दिन और दो आश्विन मास होमेसें पर्युषणाके पिछाड़ी कार्तिक तक १०० दिन होते है जिसको भी ७० दिन अपनी कल्पनासे मान्य करके निर्दूषण बनना चाहते है सो कदापि नही हो सकता है क्योंकि अधिक मासको कालचूला की उत्तम ओपमा गिनती करने योग्य शास्त्रकारोने दिवी है जिसका विशेष निर्णय तीनों महाशयोंके नामकी समीक्षामें अच्छी तरहसे छपगया है और आगे फिर भी कालचूला सम्बन्धी श्रीनिशीथ चूर्णिकां अधूरा पाठ और श्रीदशवैज्ञालिक सूत्रके प्रथम चूलिकाकी वृहद्वृत्तिका अधूरा पाठ लिखके भावार्थ लिखे बाद फिर भी अपनी कल्पनासे पूर्व पक्ष उठा कर उसीका उत्तरमें भी पृष्ठ ९९ की पंक्ति १३ तक उत्सूत्र भाषणरुप लिखा है जिसका उतारा इन्ही पुस्तकके पृष्ठ ५९ और ६० की आदि तक छपाके उसीकी समीक्षा पृष्ठ ६० में ६५ तक इन्ही पुस्तकमें अच्छी तरहसें खुलासा पूर्वक छपगई है और श्रीनिशीथचूर्णिके प्रथमोशेका काल. चूलासम्बन्धी सम्पूर्ण पाठ और श्रीदशवकालिककी प्रथम चूलिकाके वृहद्वत्तिका सम्पूर्ण पाठ भावार्थके साथ खलासा पूर्वके इन्ही पुस्तकके पृष्ठ ४९ में पृष्ठ ५- तक विस्तारसें छपगया है और तीनों महाशयोंके नामकी समीक्षा में भी इन्ही पुस्तकके पृष्ठ ७५ से ७८ तक और आगे भी कितनी ही जगह छप गया है उसीको पड़नेसे पाठक
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