________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir
[ १८२ ]
तथा उन्होंके परिवारवालोंके उपर बरोबर न्याय युक्त अच्छी तरहसे घटता है सोही दिखाता हूं कि देखो न्यायभोनिधिजी तथा इन्होंके परिवारवाले और उन्होंके पक्षधारी वर्त्तमानिक श्रीतपगच्छ के सबी महाशय - विशेष करके श्रीसमवायाङ्गजी सूत्रका पाठको पर्युषणा सम्बन्धी सब कोई लिखते हैं मुखसे कहते हैं और उन्ही पर पूर्ण श्रद्धा रखके वड़ाही आग्रह करते हैं उस पाठ में वर्षाकालके पंचास दिन जानेसें और पिछाड़ी 90 दिन रहने पर्युषणा करणा कहा है यह पाठ भावार्थ: सहित आगे बहुत जगह छप गया हैं इस पर बुद्धिजन सज्जन पुरुष विचार करों कि - वर्त्तमानमें दो श्रावण होनेसे भाद्रपद में पर्युषणा करने वालोंको ८० दिन होते हैं जिससे पूर्वभागका एक अङ्ग सर्वथा खुल्ला हो जाता है और दो आश्विन मास होनेसें कार्तिक तक १०० दिन होते हैं जिससे उत्तर भागका एक अङ्ग भी सर्वथा खुल्ला हो जाता है इस तरह से न्यायांभो निधिजी आदि जो श्रीसमवायाङ्गजी सूत्रके पाठसें दो श्रावण होते भी भाद्रपद तक ५० दिने पर्युषणा और दो आश्विन होते भी कार्त्तिक तक पर्युषणाके पिछाड़ी 90 दिन रखना चाहनेवाले महाशयोंको श्रावण और आश्विन मास बढ़ने से दोनों अङ्गः श्रीजिनाज्ञारूपी वस्त्र करके रहित प्रत्यक्ष बनते हैं यह तो ऐसा हुवा कि दोनों खोईरे जीगटा मुद्रा और आदेश - किं वा - कोई एक संसारिक गृहस्थाश्रम छोड़के साधु हुवा परन्तु साधुकी क्रिया न करसका और पीछा गृहस्थ भी न हो सका उसीको उभय भ्रष्ट याने न साधु और न गृहस्थ ऐसे को 'यतो
For Private And Personal