________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir
[१८१]
जिसको भी शास्त्र विरुद्ध ठहराकर न्यायाम्भोनिधिजी अपने ही पूर्वाचार्य्योकी आशातनाके फलविपाकका भय मही करते है सो बड़ीही अफसोसकी बात है और मासवृद्धि होनेसें कार्त्तिक सम्बन्धीकृत्य आश्विनमासमें करने का न्यायाम्भोनिधिजी लिखते हैं सो भी उन्हकी समझ में फेर है क्योंकि शुद्धसमाचारोकार तथा श्रीखरतरगच्छ वाले मासवृद्धि होनेसे शास्त्रानुसार पर्युषणाके पिछाड़ी १०० दिन मान्य करते हैं इस लिये उन्होंको तो कार्त्तिक सम्बन्धीकृत्य आश्विन मासमें करने की कोई जरूरत नही है, और आगे ( एक अङ्गका आच्छादन किया और दूसरा अङ्ग खुल्ला होगया) इन अक्षरोंको लिखके न्यायाम्भोनिधिजीनें अङ्ग याने शरीरका दृष्टान्त दिखाया परन्तु यह दृष्टान्त शुद्धसमाचारीकार तथा श्रीखरतरगच्छवालोंके उपर किञ्चित् भी नही घट सकता हैं क्योंकि मासवृद्धिके अभाव से श्रीसमवायाङ्गजीमें कहे हुवे पर्युषणाके पिछाड़ीका 90 दिन मान्य करके उसी मुजब वर्त्तते हैं और मासवृद्धि दो श्रावणादि होनेसे अनेक शास्त्रोंके प्रमाणसे पर्युषणाके पिछाड़ी १०० दिनको भी मान्य करके उसी मुजब वर्त्तते हैं इसलिये उन्होंका तो शास्त्रानुसार वर्त्तनेका होने से श्रीजिनाज्ञारूपी वस्त्रों करके सर्व अङ्ग परिपूर्णतासें ( आच्छादन ) याने ढका हुवा है इसलिये एक अङ्ग खुला रहने का दूषण लगाना न्यायां भोनिधिजीका प्रत्यक्ष मिथ्या है परन्तु इन्ही पुस्तकके पृष्ठ १६४ और १६५ में आ न्याय छपा है इसी न्यायानुसार उपरोक्त खुल्ला अङ्गका दृष्टान्त खास करके दोनों तरहसे न्यायां भोनिधिनी के
For Private And Personal