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[ १६८ ] जो जैन टिप्पणादिकका विशेष दिखाया है यह तो अश जनकों केवल भ्रमाने के वास्ते है ) अब हे पाठकवर्ग सज्जन पुरुषों उपरके न्यायाम्भोनिधिजी के वाक्यको पढ़के अच्छी तरहसे विचार करो कि श्रीतीर्थङ्कर गणधर केवली भगवान् और पूर्वधरादि महान् धुरन्धर प्रभाविक पूर्वाचार्य तथा खास न्यायाम्भोनिधिजीके ही पूज्य पूर्वाचार्य सबी महाराज जैनसिद्धान्त (शास्त्रों ) की अपेक्षायें जैनपञ्चाङ्ग में युगके मध्यमें पौष और अन्त में आषाढ़ मासकी मर्यादा पूर्व वृद्धि होती है ऐसा कहते हैं सो अनेक शास्त्रों में प्रसिद्ध है जिसमें अनुमान पचाश शास्त्रोंके पाठों की तो मुझे भी मालुम है कि जैन शास्त्रोंमें पौष और आषाढ़ की वृद्धि श्रीतीर्थङ्करादिकोने कही है इसी ही अनुसार शुद्धसमाचारी कारने भी पौष और आषाढ़ की जैन सिद्धान्तों की अपेक्षायें वृद्धि लिखी हैं जिसको न्यायाम्भोनिधिजी अज्ञ जनोंको भ्रमानेका ठहराते है सो यह तो ऐसा न्याय हुवा कि
जैसे श्रीअनन्त तीर्थङ्करादि महाराज अनादिकाल हुवा उपदेश करते आये है कि । हे भव्यजीवों तुम्हारी आत्माको सुख चाहो तो द्रव्य भाव जीवदया पालो इस वाक्यानुसार वर्तमानमें भी उपगारी पुरुष उपदेश करते है जिस उपदेशकों कोई भी जैनाभास द्वेषबुद्धिवाला अज्ञजनोंको केवल भ्रमानेका ठहरावें तो उस पुरुषनें श्रीअनन्त तीर्थ
रादि महाराजांकी आशातना करके अनन्त संसार वद्धिका कारण किया यह बात सर्वसज्जन पुरुष जैनशास्त्रोंके जानकार मंजूर करते है तैसे ही श्रीअनन्त तीर्थङ्करादि महाराज अनादि काल हुवा जैन सिद्धान्तोंकी अपेक्षायें पौष
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