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[ ११४ ]
तब तो अनेक शास्त्रों के विरुद्ध है और आप चौथकाही पर्युषणा करते होवेंगे तब तो शुद्धसमाचारी कारको दूषण लगाना वृथा है इसको भी पाठकवर्ग विचार लो ;
और पर्युषणाके पीछाड़ी जो १० दिन न्यायाम्भोनिधि जी रख्खना कहते हैं सो किस हिसाब से गिनती करके ररूखते हैं इसका विवेक बुद्धिसे हृदयमें विचार किया होता तो शुद्ध समाचारी कारको दूषण लगानेका लिखनाही भूल जाते क्योंकि तिथियोंकी हानी बृद्धिसें किसी वर्ष में ६९ और किसी वर्षमें ६८ दिन भी होजाते हैं सो पाठकवर्ग बुद्धिजन पुरुष न्याय दृष्टिसे विचार कर लेना ;
और भी आगे जैन सिद्धान्तसमाचारी पुस्तकके पृष्ठ की पंक्ति २० वीं सें पृष्ठ ९० की पंक्ति ११ वीं तक ऐसे लिखा है कि [ पूर्वपक्ष, आप तो मुखसेंही बाता बनाई जाते हो परन्तु कोई सिद्धान्तके पाठसें भी उत्तर है वा नही-उत्तरहे समीक्षक दृढ़तर उत्तर देते हैं देखो कि श्रावणमास बढ़ने से दूसरे श्रावणमें और भाद्रव बढ़ने से प्रथम भाद्रव मासमें पर्युषणा करना यह तुमने ८० (अशी) दिनकी प्राप्तिके भयसे अङ्गीकार किया परन्तु श्रीसमवायाङ्गजी सूत्र में ऐसा पाठ है, यथा-सवीसह राइमासे वइकुंते सत्तरिराइदिएहिं सेसेहिं वासावासं पज्जोसवेइत्ति, भावार्थ:- जैसे आषाढ़ चौमासेके प्रतिक्रमण किये बाद एकमास और वीश दिनमें पर्युषणा करें तैसे पर्युषणा के बाद 90 सत्तर दिन क्षेत्रमें ठहरे – हे परीक्षक - अब इस पाठके विचारणेसें तुमको मास की वृद्धि हुये कार्त्तिक सम्बन्धी कृत्य आश्विनमासमें करना पढ़ेगा और कार्त्तिक मासमें करोंगे तो १०० रात दिनकी
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