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[ १७७ ] अवश्य होजायगें] यह अक्षर पृष्ठ ८९ की पंक्ति ३।४ में लिखें हैं अब पाठकवर्ग विचार करो कि अधिकमास होनेसें तेरह मास अवश्य करके न्यायांभोनिधिजीने मान्य करलिये जब अधिकमास गिनतीमें मंजूर हो चुका तब दो श्रावण होनेसें भाद्रपद तक ८० दिन न्यायांभोनिधिजीके वाक्यसें भी सिद्ध होगये तो फिर पचास दिने पर्युषणा करनेका पाठ दिखानी और ८० दिने अपनी कल्पनासें पर्युषणा करना यह कोई बुद्धिवाले विवेकी श्रीजिनाज्ञाके आराधक पुरुष का काम नही है सो पाठकवर्ग भी विचार लेना ;____ और भी दूसरा सुनो (श्रावणमास बढ़नेसें दूसरे श्रावण में और भाद्व बढ़नेसें प्रथम भादव मासमें पर्युषणा करना यह तुमने ८० ( अशी ) दिनकी प्राप्तिके भयसे अङ्गीकार किया ) इन अक्षरोंका तात्पर्य ऐसे निकलता है कि शुद्ध समाचारीकारकों तो ८० दिने पर्युषणा करनेसे शास्त्रविरुद्धका भय लगा तब पचास दिने पर्युषणा करनेका अङ्गीकार किया परन्तु न्यायाम्भोनिधिजीको ८० दिने पर्युषणा करनेसे शास्त्र विरुद्धका भय नही लगता है इस लिये दो प्रावण होते भी भाद्रपद में और दो भाद्रपद होनेसे दूसरे भाद्रपद में ८० दिने पर्युषणा शास्त्रविरुद्धताको न गिनके करते हैं यह बात सिद्ध होगइ इस बातको पाठकवर्ग भी विशेष करके विचार लो;___ और श्रीसमवायाङ्गजी सूत्रका पाठको दिखाकर दो श्रावणादि होते भी 90 दिन पर्युषणाके पिछाड़ी रखने का जो न्यायांभोनिधिजी कहते है सो भी सूत्रकार तथा वृत्तिकार महाराजके और युक्ति के भी विरुद्ध है क्योंकि
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