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और आषाढ़ की वृद्धि कहते है सोही बात शुद्धसमाचारी कारने भी जैन सिद्धान्तोंकी अपेक्षायें लिखी है सो सत्य है इसलिये निषेध नही हो सकती है। तथापि न्यायाम्भोनिधिजी उपर की सत्य बातकों अन जनोंको केवल भ्रमानेका टहराते हैं हा ! हा ! अतिव खेदः। उपरोक्त न्यायानुसार न्यायांभोनिधिजीने श्रीअनन्त तीर्थङ्करादिमहाराजोंकी और अपने ही पूर्वजोंकी आशातना कारक अनन्त संसार वृद्धिका कारणरूप वधा क्योंकिया होगा इसको विशेष पाठकवर्ग स्वयं विचार लेना ;
तथा थोडामा और भी सुन लिजीये-शुद्ध समाचारी कारने जैन सिद्धान्तों की अपेक्षा पौष और आषाढ़ मास की वृद्धि दिखाई और लौकिक टिप्पणा की अपेक्षायें हरेक मासेांकी वृद्धि दिखाई सो सत्य है तथापि न्यायाम्भोनिधिजी ( अज्ञजनोंको केवल भ्रमानेका ) ठहराते है तो इस लेखसे तो न्यायाम्भोनिधिजीने खास अपने ही पूज्य गुरुजन पूर्वाचार्यों को भी अज्ञजनोंको भ्रमाने वाले ठहरा दिये क्योंकि जैसे उपरोक्त शुद्ध समाचारी कारने अधिक नास सम्बन्धी लिखा है तैसे ही श्रीतपगच्छके पूर्वाचार्यों ने भी लिखा है। जब शुद्ध समाचारी कारके लेखको न्यायाम्भोनिधिजी अज्ञजनोंको भ्रमानेका ठहराते है तब तो न्यायाम्भोनिधिजीके पूर्वाचार्योका लेख भी अज्ञजनोंको भ्रमानेवाला ठहर गया जब न्यायाम्भोनिधिजीने अपने पूर्वाचा
योंकी आशातनाका कुछ भी भय न रस्खा तो फिर न्यायाम्भोनिधिजीको न्याययुक्त आत्मार्थी कैसे मान सकते है अपितु नही इस बातको भी पाठकवर्ग विचार लो,
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