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। १४७ } होते भी पर्युषणाके पीछाड़ी ७० दिन रखनेका झगड़ा उठाया___ और श्रीलीर्थङ्कर गणधरादि पूर्वधर पूर्वाचार्य और प्राचीन सब गच्छों के पूर्वाचार्य जिप्तमें श्रीतपगच्छकेही पूर्वज पूर्वाना-दि महाराजोंने अधिक मासको प्रमाण किया था सो इन तीनों महाशयोंने उपरोक्त महाराजोंकी आशातनाका भय न रखते हुए अधिकमासको निषेध कर दिया और श्रीतीर्थङ्कर गणधररादि महाराजोंने जैसे सुमेरु पर्वतके उपर चालीशयोजनके शिखरको तथा अन्य भी हरेक पर्वतोंके शिखरोंको और देव मन्दिरादिकके शिखरोंको क्षेत्र चूलाकी उत्तम ओपमा कही है तेही चंद्र संवत्मरके बार मासोंके उपर शिखररूप तेरह वा अधिकमासको भी कालचूलाकी उत्तन ओपना देकर गिनती में लिया था जितको इन तीनों महाशयोंने धर्मकार्यो की गिनती में निषेध करने के लिये अधिकमास को नपुंशकादि हलकी ओपमा देकर श्रीतीर्थकर गणधरादि महाराजोंकी विशेष बड़ी भारी आशातना किवी हैं और अपनी बात जमाने के लिये श्रीदशाश्रुतस्कन्धसूत्र की चूर्णि तथा श्रीनिशीथचूर्णि
और श्रीसमवायाङ्गजी सूत्रके पाठ लिखके दृष्टि रागियोंको दिखाये थे सोभी शास्त्रकार महाराज के विरुद्धार्थ में तथा उन्ही तीनों शास्त्रों में अधिकमास को अच्छी तरह से प्रमाण कियाथा तथापि इन तीनों महाशयोंने उन्ही तीनों शास्त्रोंके पाठोंको जड़ मूलसे ही उत्थापन करके अधिक. मासको निषेध कर दिया और मासवृद्धिके अभावों पचास दिने भाद्रपद में पर्युपणा कही थी तब पर्युषणाके पीझाड़ी १०
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