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[ १५५ ] भाप्तकी गिनती प्रमाण किवी है। और ऐसा भी न कहना कि ज्योतिषादिक ग्रन्थों में प्रतिष्ठादिक शुभकार्य निषेध किया है तो पर्युपणा पर्व कैसे हुवें सो तो नार चन्द्रादिक ज्योतिष ग्रन्थों में, लग्न, दीक्षा, स्थापना, प्रतिष्ठादिकार्य कितनेही कारणों से निषेध किये है नार चन्द्र द्वितीय प्रकरणे यथा ॥ रविक्षेत्र गतेजीवे, जीवक्षेत्र गते रवौ । दिक्षां स्थापनांचापि, प्रतिष्ठां च न कारयेत् ॥१॥ इसवास्ते अधिक मासमें पर्युषणा करनेका निषेध किसी जगह भी देखने में नही आता है। इसी कारण से पूर्वोक्त प्रमाणोंसें श्रावण मासकी वृद्धि होनेसे दूसरे श्रावण शुदी ४ कों और भाद्रव मासकी वृद्धि होनेप्से पहिले भाद्रव शुदी ४ चौथकों पर्युषणापर्व ५० पचास दिने करना सिद्ध होता है परन्तु अशी में दिने नहीं। एस्थल अति गम्भीरार्थका है मैंने तो पूर्वगीतार्थ प्रतिपादित सिद्धान्ताक्षरों करके और युक्ति करके लिखा है इस उपरान्त विशेष तत्त्व केवली महाराज जानें, जो ज्ञानी भाव देखा है, सो सच्चा है और सर्व असत्य है। मेरे इसमें कोई तरहका हठवाद नहीं, इति श्रावण और भाद्रपद वढ़ते पचास दिने पर्युषणा करणाधिकारः ॥--
अब पाठकवर्ग उपरका लेख शुद्धतमाचारी प्रकाशनामा ग्रन्थका पढके विचार करोकी लेखक पुरुषनें कैती सरलरीतिसे लिखा है और अन्तमें किसी गच्छवालेकों दूषित न ठहराते, (विशेष तत्त्व केवली महाराज जानें जो ज्ञानी भाव देखा है सो सच्चा है और सर्व असत्य है मेरे इसमें कोई तरहका हठवाद नही है) ऐसा लिखने में लेखक पुरुष पं० प्र० यतिजी
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