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[ १४१ ]
निषेध करना नहीं बनेगा, और अधिक मासको निषेध करनेके लिये जो जो कल्पना उपरके पाठ में लिखी है सो सबही वृथा होजावेगी सो पाठकवर्ग स्वयं विचार लेना;
और जैसे श्रीजिनेश्वर भगवान्की प्रतिमाजीके निंदक जैनाभास ढूंढिये और तेरहा पन्थी हठग्राही कदाग्रहीलोग अपने पक्षको भ्रमजाल में भोले जीवोंको फसानेके लिये जिस सूत्रका पाठ लोगोंको दिखाते हैं उन्हीं सूत्रके पाठको जड़ मूलसेही उत्थापन करते है तैसेही इन तीनों महाशयोंने भी किया अर्थात् श्रीदशाश्रुतस्कंधसूत्र के अष्टमाध्ययनरूप पर्युषणा कल्पचूर्णिका और श्रीनिशोथसूत्रको घूर्णिके दशवें उद्देशेका पाठ लिखके भोले जीवोंको दिखाया था उन्हीं चूर्णिके पाठको जड़मूल से उत्थापन भी कर दिया, क्योंकि प्रथम पर्युषणा भाद्रपद में ठहरानेके लिये दोनु चूर्णिके पाठ लिखे थे जिसमें स्वभाविक रीतिसे आषाढ़ चौमासीसें पचास दिनके अन्तर में कारण योग सें श्रीकालकाचार्यजीने पर्युषणा किवी थी सोभी प्राचीनकालाश्रय गुनपचास (४९) वें दिन मास वृद्धि के अभावसै परन्तु शास्त्रोंके प्रमाण उपरान्त एकावन दिने पर्युषणा नहीं किवी थी, तथापि इस जगह उन्हीं पाठको तीनों महाशयोंने जड़भूलसेही उत्थापन करके स्वभाविक रीति से प्रथम भाद्रपद था उसीको छोड़कर दूसरे भाद्रपद में ८० दिने पर्युषणा करनी लिख दिया, फिर निर्दूषण बनने के लिये उन्हीं दोनु चूर्णिमें अधिक मासको प्रमाण किया था उन्हीं चूर्णिके पाठको उत्थापनरूप अधिक मासको निषेध भी कर दिया, हा. आफसोस ;
अब सज्जन पुरुषोंसे मेरा इतनाही कहना हैं कि दो
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