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[ १२८ ] भय होवे और श्रीजिनेश्वर भगवान् की आज्ञाके आराधन करने की इच्छा होवे तो अधिक मासकी गिनतीको प्रमाण करो और दो श्रावण हो तो दूजा प्रावणमें तथा दो भाद्र पद हो तो प्रथम भाद्रपदमें पचास दिने पर्युषणा करनी मंजर करो करावो श्रद्धो परूपो और मास वृद्धि होनेसे पर्युषणाके पीछाडी १०० दिन स्वभाविक होते है जिसको मान्य करो इस तरह का जब प्रमाण करोगे तब ही जिनाजाके आराधक निर्दूषण बनोंगे। नहीं तो कदापि नही, आगे, इच्छा तुम्हारी-इतने परमी श्रीसमवायांगजी सूत्रका पर्युषणा के पहिले ५० और पीछाड़ी ७० दिनका पाठको दिखाकर मास वृद्धि होते भी दोन बात रखने के लिये जितनी जितनी कल्पना जोजो महाशय करते रहेंगे सोसो सूत्रकारके विरुद्धार्थमें वृथा परिश्रम करके उत्सूत्र भाषक बनेंगेक्योंकि ५० और 90 दिन चारमासके १२० दिनका वर्षाकाल संबंधी पाठ है इसलिये दो श्रावणादि होनेसे पाँचमासके १५० दिनका वर्षाकालमें श्रीसमवायांगजीका पाठको लिखना सो प्रत्यक्ष सूत्रकारके वृत्तिकार के और न्याय युक्तिसे भी सर्वथा विरुद्धार्थ में हैं इसका विशेष खुलसा उपरोक्त देखो।
और एक युगके पांच संवत्सरोमें दोनु अधिकमासकों खास श्रीसमवायाङ्गजी मूलसूत्रमें तथा वृत्ति वगैरह अनेक शास्त्रोंमें खुलासा पूर्वक प्रमाण किये है जिसके विषयमें २२ शास्त्रोंके प्रमाण तो इसी ही पुस्तक के पृष्ठ २७ तथा २८ और २९ मे छपगये है और भी सूत्र, वृत्ति, प्रकरण, वगैरह अनेक शास्त्रोंके प्रमाण अधिक मासको गिनतीमें करने के लिये हमको मिले है सो आगे लिखने में आवेंगे, अधिक
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