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अक्षण करलिया इत्यादि प्रश्न उठाकर इसका संबंध छोड़के-तभी साम्वत्सरिक क्षामणामें तेरहमास होते भी बारहमासके क्षामणे करता है इत्यादि लिख कर क्षामणाका संबंध लिख दिखाया और प्रश्न कारके उपर ही गेरके अपनी विद्वत्ता दिखाई परन्तु सम्पूर्ण प्रश्न के संबंधका समाधान उत्तरमें शास्त्रों के प्रमाणसे तो दूर रहा परन्तु युक्ति पूर्वक भी कुछ नहीं कर शके क्या अलौकिक अपूर्व विद्वत्ता प्रश्नके उत्तर देने में तीनों विद्वानोंने खर्च किवी हैं सो पाठक वर्ग बुद्धि जन पुरुष स्वयं विचार लेना, और तु भी अधिकमास होनेसे तेरह मासके क्षामणा न करते बारह मासका करके अधिक मासको अङ्गीकार नहीं करता हैं इत्यादि तीनों महाशयोंने लिखा हैं सो मिथ्या हैं क्योंकि अधिक मासकी गिनती करने वाले मुख्य श्रीखरतर गच्छवाले जब अधिकमास होता है तब अभिवर्द्धित संवत्सराश्रय सांवत्सरिक क्षामणे में तेरह मास तथा छवीश पक्षादि और अभिवर्द्धित् चौमासेमें भी पांचमास तथा दशपक्षादि खुलासा कहकर सांवत्सरिक और चौमासी क्षामणेमें अधिक मासको गिनतीमें प्रमाण करते हैं इसलिये अधिक मासको क्षामणामें अङ्गीकार नही करता हैं ऐसा तीनो महाशयों का लिखना प्रत्यक्ष मिथ्या हो गया और इस जगह किसीको यह संशय उत्पन्न होगा कि तेरह मास छवीश पक्षादि किस शास्त्रमें लिखे है तो इस बातका सातवें महाशय श्रीधर्मविजयजी के नामसे पर्युषणा विचार नामकी छोटीसी पुस्तक की आगे में समीक्षा करूंगा वहाँ विशेष खुलासा शास्त्रोंके प्रमाणसे लिखा जायगा सो पढ़नेसे सर्व निर्णय हो जावेगा।
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