________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir
(
१३
)
साम्वत्सरिककृत्याविशिष्टा गृहिज्ञातमात्राच, तत्र साम्ब. त्सरिककृत्यानि 'सांवत्तर प्रतिक्रांति १ लञ्चनं २ चाष्टमंतपः ३ महिंद्भक्तिपूनाच ४ संघस्यक्षामण मिथः ५ ॥१॥" एतत्कृत्य विशिष्टा भाद्रपदसित पंचम्यामेव कालिकाचार्यादेशाच्चतुा मपिकार्या, केवलं गृहिज्ञातातु सा यद् अभि. वर्द्धितवर्षे चातुर्मासिकदिनादारभ्य विंशत्यादिनैर्वयमत्र स्थितास्मइति पृच्छता गृहस्थाना पुरोवदंति तदपि जैन टिप्पनका. नुसारेण यतस्तत्र युगमध्ये पौषो युगांतेचाषाढएव वर्द्धते नान्येमासास्तहिप्पनकन्तु अधनासम्यग न ज्ञायते अतः पंचाशतै वदिनैः पर्युषणायुक्ततिवृद्धाः ॥
उपरोक्त श्रीखरतरगच्छ तथा श्रीतपगच्छ उन दोनों गच्छवालोंके छ पाठोंका मंक्षिप्त भावार्थ:--अंतरा वियसे कप्पा । अन्तरापिच अर्वागपि कल्पते पर्युषितं. इत्यादि कहनेते-जो आषाढ़ चौमामीसे ५० दिने पर्युषणा करने में आती है जिसमें कारण योगे ५२ दिनके अंदर ४ वे दिन पर्युषणा करना कल्पता है पन्तु ५१ वे दिनकी जो भाद्रपद शुक्ल पंचमीकी रात्रिहै उसीको उल्लंघन करना नहीं कल्पता है और उषधातुमे उषणा बनता है तथा परिउपसर्ग लगनेसे पर्युषण बन जाता है मो उपधातु निवास अर्थ में वर्तती है अथवा गण संबंधी वप्त धातु भी निवासार्थमें वर्तती है और ग्रामानुग्राम विहार करने का निवारण करके सर्वथा प्रकारसे वर्षाकाले एकस्यान में निवास करना सो पर्युषणा कही जाती है वो पर्युषणा इहां दो प्रकारकी है गृहस्थी लोगोंकी जानी हुई तथा गृहस्थी लोगोंकी नहीं जानीहुई तिसमें गृहस्थोलोगों को नहीं जानी हुई पर्युषणा जिसमें वर्षाकालके उचित
For Private And Personal