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अवसर में अधिक मासका विचार न्यारा नही करेंगे. इस वास्तळे अधिक मासकों कालचूला कहते है ] ।
उपरके लेखकी समीक्षा करते हैं कि - प्रथमतो जैन सिद्धान्त समाचारकारने निशीथ सूत्रके नामसे चूलाका पाठ लिखा है सो सूत्र में बिलकुल नही है किन्तु निशीथ सूत्रकी चूर्णिमें जिनदास महत्तराचार्य्यजीने चूलासम्बन्धी व्याख्या किवी है और दशवैकालिक सूत्रकी वृत्तिके पाठका नाम लिखा सोभी नही है किन्तु दशवैकालिक सूत्रकी प्रथम चूलिका की वृहत् वृत्तिमें पाठ हैं और उपरमें जो चूला चतुर्विध्यं इत्यादि पाठ लिखा है सो न तो चूर्णि - कारका है और न वृत्तिकारका है क्योंकि चूर्णिकार ने और वृत्तिकारने द्रव्यचूला, आगन नो आगमसे भव्यशरीर और सचित्त, अचित्त, मिश्र, तथा क्षेत्रचूला भी सिद्धतिला और मेरुपर्वत अथवा मेरुचूलिका इत्यादि कालचूला भाव चूलाकी विस्तार से व्याख्या किवी हैं सो हम उपर में सम्पूर्ण पाठ लिख आये हैं । जिसको और जैन सिद्धान्त समाचारी कारका लिखा पाठको वांचकवर्ग आपस में मिलावेंगे तो स्वयं मालुम हो सकेगा कि जैनसिद्धान्त समाचारकारने जो पाठ लिखा है सोनिकेवल बनावटी है क्योंकि हमने उपरमें सम्पूर्ण पाठ लिखा है जिसके साथ इस पाठका अक्षर अक्षर और पंक्ति पंक्ति नही मिलती है तथा चूर्णिकार की प्राकृत संस्कृत मिली हुवी भाषा है और वृत्तिकारकी निर्युक्ति सहित व्याख्या किवी हुई है । जिनसे उपरका पाठ बिलकुल भाषा वर्गणादिमें बरोबर नही है इस लिये उपरका पाठ बनावटी हैं— सो प्रत्यक्ष दिखता है तथापि
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