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[ ६५ ] सो अधिक मास नियम करके होनेसे युगके मध्यमें दो पौष तथा युगके अन्तमें दो आषाढ़ होते हैं जब दो आषाढ़ होते हैं तब ग्रीष्म ऋतुमें चेव निश्चय वो अधिकमास अफ्रिान्त (व्यतित) होगया इस लिये अभिवद्धित संवत्सरमें आषाढ़ चौमासीसे वीश दिन तक अनियत वास, परन्तु वीशने दिन जो श्रावण शुक्लपञ्चमी उसी दिन से नियत वास निश्चय पर्युषणा होवे और चन्द्र संवत्सरमें पचास दिन तक अनियत वास, परन्तु पचासमें दिन जो भाद्रपदशुक्लपञ्चमी उसी दिनसै नियत वास निश्चय पर्युषणा होवे___ अब उपरके पाठसे पाठकवर्ग पक्षपात रहित होकर स्वयं विचार करेंगे तो प्रत्यक्ष निर्णय हो सकेगा कि सास चूर्णिकार महाराजने माप्त वृद्धिको गिनतीमें चेव (नि) अवश्यमेव कहा है और प्रथम उद्देशेका जो पहिले पाठ लिखचुके हैं जिसमें कालचूलाकी भी उत्तम ओपना दिवी है मो अधिक मासकी गिनती करनेसेही अभिवति नाम संवत्सर बनता है सो विशेष उपर लिख आये है तथापि जैन सिद्धान्त समाचारीके कर्त्ताने चूर्णिकार महाराजके विरुद्वार्थमें कालचूला कहनेसें अधिक मासकी गिनती नहीं करना ऐसा लिखने में क्या लाभ उठाया होगा सो पाठकवर्ग विचार लेना-इति ॥ ___ तथा और इसके अगाड़ी श्रीतपगच्छके अर्वाचीन (थोड़े कालके) तथा वर्त्तमानिक त्यागी, वैरागी, संयमी, उत्क्रष्टि क्रिया करनेवाले जिनाज्ञा मुजब शास्त्रानुसार चलने वाले शुद्ध रूपक सत्यवादी और सुप्रसिद्ध विद्वान् नाम धराते भी प्रथम श्रीधर्मप्तागरजीने श्रीकल्पकिरणावली में
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