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इन तीनो महाशयांने प्रथम अभिवर्द्धित वर्षे इत्यादि वाक्य लिखे जिससे अधिक मासको गिनती ति हुई और (पञ्चाशतैश्च दिनैः पर्युषणा युक्तेति वृधः ) यह वाक्य लिखके इस काल नें पचास दिने पर्युषणा करना ऐसे सिद्ध किया जिसमें जैन टिप्पनाके अभाव से भी पचास दिनका तो निश्चय रक्खा इस लिये वर्तमान काल में पर्युषणा सर्वथा भाद्रव पदमें ही करनेका नियम नही रहा क्योंकि श्रावण मासको वृद्धि होने से दूजा श्रावण में और दो भाद्रव होनेते प्रथम भाद्रवमें पचास दिनकी गिनती पूरी होती है यह मतलब तीनो महाशयोंके लिखे हुवे वाक्यसेभी विद होता है तथापि उपर का मतलबको ये तीनो महाशय जानते भी गच्छके पक्षपात के जोर से अपनी विद्वत्ताको लघुता कारक और अप्रमाण रूप विसंवादी (पूर्वापर विरोधि ) वाक्य अपने स्वहस्ते लिखते बिलकुल विचार न किया और आषाढ़ चौमासीसे दो श्रावण होनेके कारणसे भाद्रव शुड़ी तक ८० दिन प्रत्यक्ष होते हैं जिसको भी निषेध करनेके लिये (पर्युषणावि भाद्रपदमास प्रति बढ़ा तत्रैव कर्तव्या दिनगणनालधिक मासः कालचूलेत्य विवक्षणाद्दिनानां पञ्चाशतैव कुतोऽशीति वार्त्तापि ) इन अक्षरोंको तीनो महाशयोंने लिखे है जिस में मास वृद्धि होने से भी भाद्रपदमें पर्युषणा करना और दो श्रावण होवे तो भी भाद्रवेमें पर्युषणा करनेते ८० दिन होते हैं ऐसी वार्त्तापि नही करना क्योंकि अधिक मास कालचूला होनेसे दिनांकी गिनतीमें नही आता है इस लिये ५० दिने पर्युषणा किया समझना ऐसे मतलब के वाक्य लिखना दोनो महाशयोंके पूर्वापर विरोधी तथा पूर्वाचाय्योंकी आज्ञा
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