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[ ११८ ] पर्युषणा करनेसे कार्तिक चौमासी तक पीछाडीके १००दिन रहते हैं तो भी कोई दूषण नहीं कहा है परन्तु मासद्धि की गिनती निषेध करनेसे श्रीअनन्ततीर्थङ्करगणधरादि महाराजोंकी आज्ञा उल्लङ्घनरूप महान् मिथ्यात्वके दूषणकी अवश्यही प्राप्ति होती है तथापि इन तीनों महाशयोंने उपरके दूषणका जरा भी विचार न किया और श्रीगणधर महाराज श्रीसुधर्मस्वानिजी कृत श्रोसमवायाङ्गनी सूत्रके पाठका उत्यापनका भी बिलकुल विवार. न करते सूत्रकार महाराजके विरुद्धार्थमें पाठ लिखके भोले जीवोंको सत्य बात परसे श्रद्धा उतारके जिनाजा विरुद्ध मिथ्यात्वरूप झगड़ेकी होर हाथमें देकर कदाग्रहमें गेरदिय हैं और अधिकमासको गिनती में लेने वालेको उलटा मिथ्या दूषण दिखाते हैं और अधिक मासकी गिनती नहीं करते भी आप निर्दूषण बनके श्रीसमवायाङ्गजी सूत्रके पाठसे सत्यवादी तथा आज्ञा के आराधक बनते हैं जिसका पाठ इसी पुस्तकमें पृष्ठ ६९ । 90 में और भावार्थः पृष्ठ ७२ । १३ में छपगया है इसलिये इस जगह पुनः पाठ न लिखते थोडासा मतलब लिखके पीछे उसमें जो जो शास्त्र विरुद्ध है सो दिखावेंगें-तीनों महाशयोंका खास अभिप्रायः यह है कि अधिक मासको गिनती में करनेवालोंको दो आश्विन मास होनेसे दूजा आश्विनमें चौमासी कृत्य करना पड़ेगा और दूजा आश्विनमें चौमासी कृत्य न करते कार्तिकमें करेगे तो पर्युषणाके पीछाड़ी १०० दिन हो जावेगे तो श्रीसमवायाङ्गजी सूत्रके वचनको बाधा आवेगा क्योंकि-समणे भगवं महावीरे वासाणं सवीसहराइ मासे विइक्वंते सत्तरिएहिराइंदिएहिं इत्यादि श्रीसम
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