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[ ११९ ] वायाङ्गशीमें पीकाडोके ७० दिन रखना कहा है ऐता लिखके तीनों महाशयोंने पर्युषणाके पीछे अवश्य ही १० दिन रखनेका दिखाकर अधिक मासकी गिनती करके पर्युषणा करनेवालों को कार्तिक तक १०० दिन होनेसे श्रीसमवायाङ्गजी सूत्रका पाठके बाधक ठहराये [ इस न्यायानुसार तो तीनों महाशय तथा तीनों महाशयोंके पक्षवाले सबी महाशय भी श्रीसमवायाङ्गजी सूत्रके बाधक ठहर जाते हैं क्योंकि दो आश्विन होनेसे भी चौमासी कृत्य कार्तिक मासमें करनेसे पर्युषणाके पीछाडी १०० दिन होते हैं तथापि अब आप निर्दूषण बननेके लिये फिर लिखते हैं कि कार्तिक चौमासी कार्तिक शुदीमें करना चाहिये जिसमें दो आश्विनमास होवे तो भी १०० दिन हुआ ऐसा नही समझना किन्तु अधिकमासको गिनती में नही लेनेसे 90 दिनही हुआ समझना और दो श्रावण होवे तो भी भाद्र पदमें पर्युषणा करनेसे ८० दिन हुआ ऐसा नही समझना किन्तु अधिकमाप्तको गिनतीमें नहीं लेनेसे ५२ दिनही हुआ समझना, दो श्रावण हो तथा दो. आश्विन हो तो भी गिनतीमें नही लेनेसे श्रीसमवायाङ्गजी सूत्रके वचनको बाधा भी नही आवेगी और शास्त्रोंके कहे पर्युषणाके पहिले ५० दिन तथा पीछाड़ी 90 दिन यह दोनं बात रह जाती है ] इप्त तरहका तीनों महाशयों का मुख्य अभिप्राय है ॥
इस पर मेरेको बड़ा खेद उत्पन्न होता है कि तीनों महाशयोंने कदाग्रहके जोरसे अपनी हठवादको मिथ्या बातको स्थापनेके लिये सूत्रकार महाराजके विरुद्धार्थ में
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