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( १८७ ) और इसके अगाड़ी फिर भी तीनो महाशयांने प्रत्यक्ष मायावृत्तिसे उत्सूत्र भाषणरूप अनेक शास्त्रों के विरुद्ध लिखके अपनी बात जमाई है कि ( एवं यत्र कुत्रापि पर्युषणा निरूपणम् तत्र भाद्रपदविशेषितमेव नतु काप्यागमे अहवयसुद्ध पञ्चमीए पज्जोसविज्जाति पाठवत् अभिवढियवरिसे सावण सुद्धपञ्चमीए पज्जासविनइति पाठ उपलभ्यते) इन वाक्योंको तीनो महाशयोंने लिखके इसका मतलब ऐसे लाये है कि श्रीपर्युषणा कल्प चर्णिमें तथा श्रीनिशीथचर्णि में भाद्रपदमें पर्युषणा करनी कही है इसी प्रकारसे जिस किसी शास्त्र में पर्युषणाकी व्याख्या है तहा भाद्रपद के नामसे है परन्तु कोई भी शास्त्र में भाद्रपदशुक्लपञ्चमीको पर्युषणा करनी ऐसा पाठकी तरह मासवृद्धि होनेसे अभिवर्द्धित सम्बत्सरमें प्रावण शुक्लपञ्चमीको पर्युषणा करनी ऐसा पाठ नही दिखता है, इस तरह के तीनो महाशयों के लेख पर मेरा स्तनाही कहना है कि इन तीनो महाशयांने ( अभिव. चित सम्बत्सर में प्रावण शुक्ल पञ्चमीको पर्युषणा करनेका कोई भी शास्त्रोंमें पाठ नहीं दिखता है) इस मतलबको लिखा है सो सर्वथा मिथ्या है क्योंकि जिन जिन शास्त्रोंमें चन्द्र. संवत्सरमें पचास दिने, ज्ञात, याने-गृहस्थी लोगोंकी जानी हुई पर्युषणा करनेका निमय दिखाया है उसी शास्त्रों में भभिवदित संवत्सरमें वीश दिने सात पर्युषणा करनेका नियम दिखाया है सो यह बात अनेक शास्त्रों में खुलासा पूर्वक प्रगटपने लिखी है तथापि इन तीनो महाशयोंमे मोले जीवको मिथ्या भ्रममें गेरनेके लिये अभिवर्द्धित संवत्सरमें श्रावण शुक्लपञ्चमीको पर्युषणा करने का कोई भी शाखमें पाठ नहीं दिखाता है ऐसा लिख दिया है तो सब ऐसे मिथ्या श्रमको दूर करनेके डिये इस जगह शाखों के प्रमाण
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