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दिया है जिससे ज्ञात पर्युषणा आषाढ़ चौमासीसे वीशे तथा पचाशे करे और सांवत्सरिक प्रतिक्रमणादि अन्य अमुकदिने करे ऐसा कदापि नही बनता है किन्तु जहाँ ज्ञात पर्युषणा वहाँ ही वार्षिक कृत्य बनते हैं इसलिये अभिवर्द्धित संवत्सरमें आषाढ़ चौमासीसे लेकर वीशदिने श्रावण शुक्लपञ्चमीको और चंद्र संवत्सर में पचासदिने भाद्रपद शुक्लपञ्चमीको सांवत्सरिक प्रतिक्रमणादि वार्षिक कृत्य अवश्यमेव निश्चय करनेमें आते थे यह निःसन्देहकी बात हैं तथा और भी जो पहिले तीनो महाशयांने लिखा है ( अभिवर्द्धिते वर्षे चतुर्मासिकदिनादारभ्यः विंशत्यादिनैः वयमत्र स्थिताः स्म इति पृच्छतां गृहस्थानां पुरो वदन्ति ) और इसका मतलब ऐसे लाये है कि अभिवर्द्धित संवत्सर में आषाढ़चतुर्मासीसे लेकर वीशदिने याने श्रावण शुक्लपञ्चमी सेही कोई गृहस्थी लोग पूछे तो कह देवे कि वर्षाकाल में हम यहाँ ठहरे हैं । वर्षाकाल में एक स्थानमें सर्वथा निवास करना सो पर्युषणा हैं इस मतलब से भी आषाढ़ चौमासीसे वीशदिने गृहस्थो लोगोंको जानी हुई पर्युषणा करे सो यावत् १०० दिन कार्तिक पूर्णिमा तक उसी क्षेत्र में ठहरे ॥
उपरोक्त तीनो महाशयोंके लिखे वाक्यार्थको भी विवेकी बुद्धिजन पुरुष निष्पक्षपातसे विचारेंगे तो प्रत्यक्ष मालुम हो जावेंगा कि प्राचीन कालमें अभिवर्द्धित संवत्सर में वीश दिने श्रावण शुक्ल पञ्चमी से गृहस्थी लोगों की जानी हुई पर्यु - षणा करनेमें आती थी क्योंकि जिस जिस शास्त्रानुहार चंद्र संवत्सर में पचासदिने जो जो कार्य्य करनेमें आते हैं
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