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भय नही करते हैं तो अब ऐसे विद्वानोंको आत्मार्थी कैसे कहे जावे और अधिक मासकी गिनती निषेधरूप विसंवादी मिथ्या वाक्य इन विद्वानोंका आत्मार्थी पुरुष कैसे ग्रहण करेगें अपितु कदापि नही तथापि जो अधिक मासकी गिनती निषेध श्रीतीर्थङ्कर गणधरादि महाराजोंकी आज्ञा विरुद्ध होते भी वर्तमानिक पक्षपाती जन करते हैं जिन्हें को सम्यक्त्वरूप रत्न कैसे प्राप्त होगा इस बातको पाठकवर्ग स्वयं विचार शकते हैं
और जैनशास्त्रानुसार अधिकमासके दिनोकी गिनती करनाही युक्त है इस लिये अधिकमास कालचूला है सो दिनोंकी गिनती में नही आता है ऐसा मतलब तीनो महाशका शास्त्रोंके विरुद्ध है सो उपरोक्त लेख से प्रत्यक्ष दिखता है इन शास्त्रों के न्यायानुसार वर्तमानकाल में दो श्रावण होनेसे भी भाद्रपद में पर्युषणा करने से ८०दिन प्रत्यक्ष होते हैं सो बात जगत् भी मान्य करता हैं तथापि ये तीनो महाशय और वर्तमानिक श्रीतपगच्छके महाशय भो मंजूर नही करते हैं तो इस जगह एक युक्ति भी दिखलाने के लिये श्रीतपगच्छ के विद्वान् महाशयोंसें मेरा इतना ही पूछना है कि आषाढ़ चतुर्मासीसे किसी पुरुष वा स्त्रीने उपवास करना सरू किया तथा उसी वर्ष में दो श्रावण हुवे तो उस पुरुष वा स्त्रीको पचास (५०) उपवास कब पूरे होवेंगे और अशी (८०) उपवास कब पूरे होवेंगे इसका उत्तरमें श्रीतपगच्छके सर्व विद्वान् महाशयों को अवश्यमेव निश्चय कहना ही पड़ेगा किदो श्रावण होनेसे पचास उपवास दूजा श्रावण शुदी में और ८० उपवास दो श्रावण होनेके कारणसे भाद्रपद में पूरे होवेंगे
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