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[ ६ ] अधिक मासकी गिनती निषेध नहीं करेगा तथापि श्रीतपगच्छके तीनो महाशय विद्वान् नाम धराते भी अपने बनाये ग्रन्थों में अपने स्वहस्त श्रीतीर्थङ्करादि महाराजांके विरुद्ध होकर अधिक मासकी गिनती निषेध करते हैं सो कैसे बनेगा अपितु कदापि नहीं इस लिये इन तीनो महाशयोंका कालचूलाके नामसे अधिक मासको गिनतीमें निषेध करना सर्वथा जैन शास्त्रों के विरुद्ध है तथा और भी सुनिये जैन शास्त्रों में पांच प्रकारके मासों से और पांच प्रकारके संवत्तरोंसे एक युगके दिनोंका प्रमाण श्रीतीर्थङ्करादि महाराजांने कहा है सो सर्वही निश्चयके साथ प्रमाण करके गिनती करने योग्य है जिसके कोष्टक नीचे मुजब जानो यथा
दिनांका और उपर एक अहोरात्रिके मासों के नाम
प्रमाण | भाग करके ग्रहण करना
२१
३२
नक्षत्र मास चन्द्र मास ऋतु मास सूर्य मास अभिवद्धित मास
३१ ।।
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३२७
संवत्सरों के नाम
दिनांका और उपर एक अहोरात्रिके
| प्रमाण भाग करके । ग्रहण करना नक्षत्र संवत्सर चन्द्र संवत्तर ३५४ ऋतु संवत्सर सूर्य संवत्सर ३६६ अभिवद्धित सं० ३३ ।
2005
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