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[ ] श्रीतपगच्छके अर्वाचीन तथा वर्तमानिक त्यागी, वैरागी संयमी, उत्क्रष्टिक्रिया करनेवाले जिनाज्ञाके आराधक शुद्ध परूपक श्रद्धाधारी सम्यकत्वी विद्वान् नाम धराते भी महान् उत्तम श्रीतीर्थङ्कर गणधर और पूर्वधरादि पूर्वाचार्य तथा खास श्रीतपगच्छकेही पूर्वजपूज्य पुरुषोंकी आशातनाका भय न रखते चन्द्रमासेांकी अपेक्षासै जो अधिक मास होता है जिसकी गिनती निषेध करके उत्तम पुरुषोंके कहे हुवे पाँच प्रकारके मासेंका तथा संवत्सरोका प्रमाणको भङ्ग करके एकयुगके दिनोंकी गिनतीमें भी भङ्ग डालते है जिन्होंकी विद्वत्ताको में कैप्ती ओपमा लिखु इसका विचार करता था जिसमें श्रीआत्मारामजीकाही बनाया अज्ञानतिमिर भास्कर ग्रन्थका लेख मुजे उसी वख्तयाद आया सो लिख दिखाता हुं अज्ञानतिमिर भास्कर ग्रन्थके पृष्ठ २९४ के अन्तसे पृष्ठ २९६ के आदि तक का लेख नीचे मुजब जानो____ संविज्ञ गीतार्थ मोक्षाभिलाषी तिस तिसकाल सम्बन्धी बहुत आगमे के जानकार और विधिमार्गके रसीये बहुमान देनेवाले संविज्ञ होने से पूर्वसूरि चिरन्तन मुनियों के नायक जो होगये हैं तिनीने निषेध नही करा है ; जो आचरित आचरण सर्वधर्मी लोक जिप्त व्यवहारको मानते हैं तिसकों विशिष्ट श्रुत अवधि ज्ञानादि रहित कौन निषेध करे ? पूर्व पूर्वतर उत्तमा वायोंकी आशातनासे डरनेवाला अपितु कोई नही करे बहुल कर्मीकों वर्जके ते पूर्वोक्तगीतार्थो ऐसे विधारते हैं जाज्वल्यमान अग्निमें प्रवेश करनेवाले भी अधिक साहत यह है उत्सूत्र प्ररूपणा, सूत्र निरपेक्ष देशना, कटुक विधाक, दारुण, खोटे फलकी देनेवाली, ऐसे जानते हुए भी
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