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उपरोक्त कोष्टकों में पाँच प्रकारके मासोका प्रमाणसे पाँच प्रकारके संवत्सरोंका प्रमाण, और एक युगके १८३० दिन का प्रमाण श्रीतीर्थङ्कर गणधरादि महाराजोंने कहा है जिसके अनुसार श्रीतपगच्छके श्रीक्षेमकीर्त्ति सूरिजीने भी श्रीबृहत्कल्पवृत्ति में लिखा है सो पाठ भी उपर लिख आया हु जैन शास्त्रों में सूर्य्य मासकी गिनतीकी अपेक्षासे एकयुग के ६० सूर्य्य मासेंाके पाँच सूर्य्य संवत्सरों में एक युगके १८३० दिन होते हैं जिसमें सूर्य्यमासको अपेक्षा लेकर गिनती करनेसे मासवृद्धिका ही अभाव है परन्तु एकयुग के १८३० दिनकी गिनती बरोबर सामिल होनेके लिये खास ऋतुमासाकी अपेक्षासे पाँच ऋतु संवत्सरोंमें सिर्फ एकही ऋतुमास बढ़ता है और चन्द्रमासों की अपेक्षा पाँच चन्द्रसंवत्सरोंमें दो चन्द्रमा बढ़ते हैं तथा नक्षत्रमासों की गिनतीकी अपेक्षासे पाँच नक्षत्र संवत्सरों में सात नक्षत्रमास बढ़ते है और अभिवर्द्धित मासोंकी गिनतीकी अपेक्षासे तो चार अभिवर्द्धित संवत्सर उपर
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अभिवर्द्धित मास और सात (७) दिन तथा एक अहो रात्रिके १२४ भाग करके ४१ भाग ग्रहण करे जितना काल जानसे ( नक्षत्रमास, चन्द्रमास ऋतुमास, सूर्य्यमास, और अभिवर्द्धित, मास इन सबके हिसाबके प्रमाण से ) एक युगके १८३० दिन होजाते है सो उपरके कोष्टों में खुलासा है उपरका प्रमाण श्रीतीर्थङ्कर गणधरादि पूर्वावायें का तथा श्री खरतरच्छके और श्रीतपगच्छके पूर्वज पुरुषों का कहा हुवा होनेसे इन महाराजोंकी आशातनासे डरनेवाला प्राणी १८३० दिनोंकी गिनतीमेंका एक दिन तथा घड़ी अथवा पल मात्र भी गिनतीमें निषेध नही कर सकता है तथापि
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