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दिन मेरे नगरीके लोगोंको सम्मतीसे इन्द्रध्वजका महोत्सव होता है जिससे एक दिनमें दो कार्य्य के महोत्सव बननेमें तकलीफ होगा इस लिये पर्युषणा छटकी करो तब आता
जी महाराजने कहा कि छठको पर्युषणा करना नही कल्पे अब फिर राजाने कहा कि चौथकी करो तब आचार्य जीने कहा यह बन सकता है, युगप्रधान महाराजकी इस वातको ने भी प्रमाण किवी है इत्यादि श्रीनिशीथ चूर्णिके दशवे उद्देशे में इसी प्रकारने पर्युषणाकी व्याख्या है सो भाद्रव मासमें करने की हैं जैसे ही मासवृद्धि होने से अभिवति संवत्सर (वर्ष) में श्रावण शुदी पञ्चमीकी पर्युषणा करनी ऐसा पाठ कोई भी आगममें नही मिलता है तिस कारणसे कार्तिकात बद्ध ( आश्री ) चतुर्मासिक कृत्य करने में जैसे अधिक मास प्रमाण नही है तैसे ही भाद्रव मास प्रतिबद्ध पर्युषणा करने में भी अधिकमास प्रमाण नही है इति अधिकमा की गिनती करनेका काग्रहको छोड़ोउपरका लेख अधिकमासको गिनती में निषेध करनेके लिये श्रीविनयविजयजीकृत श्रीसुखबोधिकावृत्तिके उपरोक्त पाठसे हुवा है इसी ही तरह के मतलबका लेख श्रीधर्म्मसागरजीने श्रीकल्यकिरणावली वृत्ति में तथा श्रीजयविजयजी ने श्रीकल्प दीपिका वृत्तिसे अपने स्वहस्ये लिखा है सो यहाँ गौरवता ग्रन्थ बढ़ जानेके भय से नही लिखते है जिसकी इच्छा होवे सो किरणावली के तथा दीपिकाके नवमा व्याख्यानाधिकारे देख लेना इस तीनों महाशयों के लेख प्रायः एक सदृश ( तुल्य ) है जिसमें भी विशेष प्रसिद्ध सुखबोधिका होने से मैंने उपर लिखा है सोही भावार्थः तथा पाठ तीनो महा
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