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. [ २ ] कालमें मास रहि हो अथवा न हो परन्तु पचासदिने पर्युषणा करना योग्य है ऐसे वृद्धाचार्य कहते हैं यहाँ कोई कहते हैं कि इस न्यायानुसार वर्तमान कालमें जब दो श्रावण होते हैं तब तो पचास दिनकी गिनतीसे दूजा श्रावण सुदी चौथके दिन पर्युषणा करना योग्य है परन्तु दो श्रावण होते भी माद्रव सुदी चौथ के दिन पर्युषणा करना योग्य नही है क्योंकि ८० दिन होजावेंगे, और श्रीकल्पसूत्रमें-वासाणं सवोसइराए मासे वीइक्कते-अर्थात् आषाढ़ चौमासीसें एक मात और वीशदिन उपर, कुल पचाशदिन जानेसे पर्युषणा कहा है तथापि ८० दिने करनेसे सूत्रका इस वाक्यको बाधा आती हैं इस लिये ८० दिने पर्युषणा करना योग्य नहीं है,ऐता प्रश्नरूप वाक्य सुनके इसका उत्तर रूप वाक्य श्रीविनय विजयजी अपनी विद्वत्ताके जोरसे कहते हैं कि अहो देवानां प्रिय-अहो इति आश्चर्य हेमूर्ख-अधिकमासकी गिनती करके दो श्रावण होनेसे दूजा श्रावणमें ५० दिने पर्युषणा करना कहता है तो दो आश्विन ( आसोज ) मास होनेसे ७० दिन की गिनती से दूजा आश्विन मासमें तेरेको चतुर्मासिक कृत्य करना पड़ेगा तथापि कार्तिक मासमें चतुर्मासिक कृत्य करेगा तो १०० दिन हो जावेगें, क्योंकि समणे भगवं महावीरे वासाण सवीसइराए मासेवइ कंते रुत्तरिएराईदिएहिं इति। श्रीसमवायांगजीमें पीछाडीके 90 दिन रहना कहा है इतवास्ते दूजा आसोजमें चौमासिक कृत्य करना पड़ेगा तथापि कार्तिकमें करेगा तो १०० दिन होजावेंगें तो श्रीसमवायाङ्गजी सूत्रके वचनको बाथा आवेगी इस लिये अधिक मासकी गिनती करनेसे दूजा श्रावणमें पर्युषणा करना योग्य
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