________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir
५९
]
पंक्ति १६॥ से पृष्ट ११ की पंक्ति १३ वीं तक चूला सम्बन्धी लेखका उतारा नीचे मुजब जानो
[हम अधिक मासको कालचूला मानते हैं सो अब दिखाते हैं, चूला चार प्रकारकी शास्त्र में कथन करी है, यथा-निशीथे दशवैकालिक वृत्तौ च ॥ तथाहि-'चला चातुर्विध्यं । द्रव्यादिभेदात् तत्र द्रव्य चूला ताम्र च लादि १ क्षेत्रचूला मेरोश्चत्वारिंशद्योजन प्रमाण चूलिका २ कालचुला युगे तृतीयपञ्चमयोर्वर्षयोरधिकमासकः ३. भावव ला तु दशवैकालिकस्य चलिकाद्वयं ४ इति॥
(भावार्थः ) जैसें निशीथसूत्र विषे और दशवैकालिक वृत्ति विषे है तैसें दिखाते हैं, चूला चार प्रकारकी है, द्रव्यादि भेद करके तिसमें द्रव्य वला उसको कहते है किजो मुरगादिके शिरपर होती है. १ क्षेत्रच ला यह है किमेरुपर्वतकी चालीश योजन प्रमाण जो चला है. २ काल च ला उसको कहते है कि-जो तीसरे वर्ष और पाँचमें वर्षमें अधिक मास होता है. ३ भावच ला उसको कहते है कि-जो दशवैकालिक की चूलिका है ॥४॥ ___ (पूर्वपक्ष ) काल जूला कहने से आपकी क्या सिद्धि
(उत्तर) हे परीक्षक ! काल चूला कहने से यह सिद्ध होता है कि-चलावाले पदार्थके साथ प्रमाणका विचार करना होवे तो उस पदार्थ से चला न्यारी नही गिनी जाती है जैसें मेरुका लक्ष योजन प्रमाण कहेंगे तब च लिकाका प्रमाण भिन्न नही गिणेगे।
तैसें चतुर्मासके विचारमें और वर्षके विचार करनेके
For Private And Personal