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[ ५७ ] कारण यह है कि यह मास इस संवत्सरमें वारहमासोंसे अधिक पड़ा इसलिये इसका नाम भी अर्थानुशार है इसकी गणनाके बिना अर्थानुसार नाम अभिवति संवत्सरका न होगा न होनेसे असङ्गति दोष रहता है यह चिन्तन करना चाहिये। अब अधिक मासकी गिनती नही करने वाले महाशय तेरह चन्द्रमासोंके बिना अभिवद्धि त संवत्सर कैसे बनायेंगे क्योंकि तेरह चन्द्रमासोंके बिना अभिवद्धितसंवत्सर नही हो सकता हैं तथा अभिवति संवत्सरके बिना एकयुगके ६२ चन्द्रमालोंकी ६२ अमावस्या और ६२ पूर्णिमासीके १२४ पाक्षिकोंकी गिनती नही बन सकेगा इस लिये कालचूलारूप अधिक मासकी गिनती करनेसें अभिवर्द्धित संवत्सर तेरह चन्द्र नातोंकी गिनतीसे होता है सोही श्रीअनन्ततीर्थङ्कर गणधर पूर्वाधरादि पूर्वाचार्य तथा खरतरगच्छके और तपगच्छादिके पूर्वाचार्योंने अधिकमासकों दिनों में पक्षों में मासोंमें वर्षोंमें गिनतीमें प्रमाण करके एकयुगके ६२ चन्द्रमासोंके १८३० दिनोंकी गिनती कही है सो उपरोक्त शास्त्रों के पाठोंसे लिख आये हैं जिनसे जिनाज्ञाके आराधक आत्मार्थी पुरुषों को अधिक मासकी गिनती मंजूर करनी चाहिये इसके लिये आगे युक्ति भी दिखावेंगे इति कालचूला सम्बन्धी किञ्चित् अधिकार___और चौथो भावचूला भी आगमसे तथा नो आगमसे क्षयोपशमादिकी व्याख्या प्रसिद्ध हैं और श्रीदशवैकालिकजी सूत्रकी दो चूला तथा श्रीआ वाराङ्गजी सूत्रकी दो चूला और मन्त्राधिराज महामङ्गलकारी श्रीपरमेष्टिमन्त्रको चार तूला इत्यादि सब भावजूला कही जाती हैं
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