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मोसे बीस दिने पर्यषणा करने में आती थी उसीको वार्षिक कृत्योरहित केवल गृहस्थ लोगों के कहने मात्रही ठहराई है सो कदापि नहीं बन सकता है क्योंकि अधिक मास होनेसे वीन दिनकी पर्युषणाकाही जैन पंचाङ्गके अभावसे अधिक मास होता भी ५० दिने पर्युषणा पूर्वाचार्योंने ठहराई है इस लिये वीस दिनकी पर्युषणा कहनेमात्रही ठहरानेसे ५१ दिनकी पर्युषणा भी कहनेमात्रही ठहर जादैगी और वार्षिक कृत्य उसी दिन करने का नहीं बनेगा इसलिये जैसे मासवृद्धिके अभावसै ५० दिने ज्ञात पर्युषण में वार्षिक कृत्य होते हैं तैसेही मासरद्धि होनेसे वीस दिन की ज्ञात पयु षणामें वार्षिक कृत्य मानने चाहिये क्योंकि ज्ञात पर्युषणा एकही प्रकारको शाखोंमें लिखी है परन्तु वीस दिने ज्ञात पर्युषणा करके फिर आगे वार्षिक कृत्य करे ऐसा तो किसी भी शास्त्र में नहीं लिखा है इसलिये जहां ज्ञात पर्युषणा वहांही वार्षिक कत्य शास्त्रोक्त युक्ति पूर्वक सिद्ध होते हैं इसका विशेष विस्तार इनही तीनों महाशयांके लिखे ( अधिक मासकी गिनती निषेध सम्बन्धी पूर्वापरविरोधि ) लेखांकी आगे समीक्षा होगी वहां लिखने में आवेगा। ____ अब देखिये बड़े ही आश्चयकीवातहै कि श्रीतपगच्छके इतने विद्वान मुनीमंडली वगैरह महाशय उपरोक्त व्याख्याओंको हर वर्ष फ्यु षणाके व्याख्यानमें बांचते हैं इसलिये उपरोक्त पाठाको भी जानते हैं तथापि मिथ्या हठवादसे भोले जीवोंको कदाग्रहमें गेरने के लिये पौष अथवा आषाढ़ के अधिक होने से उसीकी गिनती पूरक जैन पंचांगानुसार प्राचीनकालमें आषाढ चौमासीसे बास दिने प्रावण सुदामें
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