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और भी अधिक मासकी गिनती प्रमाण करने सम्बन्धी सूत्र, नियुक्ति, भाष्य, चर्णि वृत्ति और प्रकरणादि शास्त्रोके पाठ मौजद हैं परंतु विस्तारके कारण से यहां नहीं लिखताहू तपापि बिवेकी जनता उपरोक्त पाठार्थोंसे भी स्वयं समझ जायेंगे।
अब इस जगह जिनाजा विरुद्ध प्ररूपणा से तथा वर्तने बर्तानेसे संसार वृद्धिका भय रखनेवाले और जिनाज्ञाके आराधक आत्मार्थी निष्पक्षपाती सज्जनपुरुषाको मैं निवेदन करता हु कि देखो उपरमें श्रीचन्द्रप्रज्ञप्तिऋत्तिमें तथा श्रीसूर्य प्रजाप्तिकृत्तिने सर्व ( अनन्त ) श्रीतीर्थकर महाराजाँके कप. नानुसार श्रीमलयगिरिजीने। तथा श्रीसमवायाङ्गजी सूत्र में श्रीगणधर महाराज श्रीसुधर्मस्वामीजीने और श्रीसमवाया जी सूत्रकी वृत्तिमें श्रीखरतरगच्छके श्रीअभयदेवसरिजीने और श्रीप्रवचनसारोद्धारमैं श्रीतपगच्छके पूर्वज श्रीनेमिचन्द्र मूरिजीने । तथा श्रीवृहत्कल्पपत्ति में श्रीतपगच्छके श्रीक्षेम. कीर्ति मूरिजीने इत्यादि अनेक शास्त्रों में अधिकमासको प्रमाण करके गिनतीमें मंजर किया हैं जैसे बारे मासोकी गिनतीमें कोई न्यन्याधिक नहीं हैं तैसे ही अधिकमास होनेसे तेरहमासकी गिनती में भी कोई न्यन्याधिक नहीं। किन्तु सबी हीबरोबरहैं से उपरोक पाठापोंसे प्रत्यक्ष दिखता है से विशेष करके अधिक मासकोनी महतमि, दिनों में, पक्षों में, मासेमें वर्षों में, गिनकर पांचसंवत्सरे के एकयुगकी गिनती के दिनांका, पक्षका, मासांका, वर्षों का प्रमाण श्रीअनन्ततीर्थकर भणधर पूर्वधरादि पूर्वाचार्यों ने और श्री खरतरगच्छके तथा श्रीतपगच्छादिके पूर्वजोंने कहा है सी
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