________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailashsagarsuri Gyanmandir
[ ५३ ] क्षमाश्रमणजी महाराजके पदृधरशिष्य श्रीशीलांगाचार्यजी महाराज भी महाप्रभाविक गीतार्थ पुरुष प्रसिद्ध है। इस लिये उपरके पाठ सर्व जैनश्वेतांवर आत्मार्थी पुरुषोंको प्रमाण करने योग्य हैं ऊपरके पाठमें नाम, स्थापना, द्रव्य, क्षोत्र, काल, भाव सें, छ ( ६ ) प्रकारकी चूला कही हैं जिसमें नाम, स्थापना, तो प्रसिद्ध हैं और द्रव्य चूलादि की व्याख्या खुलासा किवी हैं कि,-द्रव्यचूला दो प्रकारको प्रथम आगमरूप शास्त्रोंमें कही हुइ और दूसरी नो आगम सो मति, अवधि, मनपर्यव, तथा केवल ज्ञानसे जानी हुइ द्रव्य चूला सो भव्य शरीर अर्थात् ज्ञानीजी महाराज अपने ज्ञानसें पहले से ही देखके जानलेवें कि यह मनुष्य आगामी काले साधु आदि धर्मी पुरुष होने वाला हैं एसा जो मनुष्य का शरीर जिप्तको द्रव्य चूला कहते हैं, कारण कि, इस संसारमें अनन्तीवार शरीर पाया परन्तु उत्तम पदवी पाने योग्य शरीर पाना बहुत मुश्किल हैं तथापि अब पाया जिससे धर्मप्राप्तिका योग्य होवे एसें शरीर को ज्ञानी महाराजने भव्यशरीर कहा हैं सो उस शरीरको अनन्ते सब शरीरोंसें उत्तम कहो तथा श्रेष्ट कहो अथवा चूलारूप कहो सबीका तात्पर्य एकार्थका हैं-और भी प्रसिद्ध द्रव्य चला तीनप्रकारकी कही है जिसमें प्रथम कुक्कट ( मुरगा) के मस्तक उपर शिखररूप मांसपेसी सहित होनेसें उतीकों सचित्तचूला कही जाती हैं तथा दूसरी मोर ( मयूर ) के मस्तक उपर शिखररूप मांसपेसी ओर रोंम सहित होने उसीको मिश्र चूला कही जाती हैं और तीसरी मणि तथा कुन्त और मुकुटादिकके उपर शिखररूप होवे उसीकों अचित्त
For Private And Personal