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( १५ )
सुजबही जाननी सो भाद्र पदकी पर्युषणा मासमृद्धिके अभाव से चन्द्रसंवत्सर संबंधिनी जानती । और मासवृद्धि होनेसे अभिवर्द्धित संवत्सर में तो आषाढ़चौमासी से बीस दिन करके याने श्रावण शुक्ल पंचमी को गृहस्थी लोगोंकी जानी हुई पर्यषणा करनेमें आती थी सो तो जैन सिद्धान्त का टिप्पणानुसार युगके मध्य में पौषमास और युगके अन्तमें आषाढ़ मास की वृद्धि होती थी परन्तु और किसी भी मासको वृद्धिका अभाव था । वोटिप्पणा तो अभी इस काल में अच्छी तरह से देखने में नहीं आता है इसलिये मासवृद्धि हो तो भी ५० दिनों पर्युषणा करनी योग्य है इस तरहसे वृद्वाचार्य कहते हैं अर्थात् मानवृद्धि होने से जैन पंचांगानुसार वीस दिने श्रावणमे पर्युषणा करनेमें आती थी परन्तु जेनपंचांगके अभाव से लौकिक पंचांगानुसार मासवृद्धि दो श्रावण अथवा दो भाद्रपद होता भो उसीकी गिनती पूर्वक ५० दिने दूसरे श्रावणमें अथवा प्रथम भाद्रपद में पर्यु - षणा करनेकी प्राचीनाचायों की आज्ञा है इसी ही कार
से श्रीलक्ष्मीवल्लभ गणितीने अधिकमासको गिनती पूर्वक ५० दिने पर्युषणा करनेका खुलासा लिखा है । उसी मुजब अरमार्थियोंको पक्षपात छोड़कर वर्तना चाहिये ।
और श्रीधर्मसागर जी श्रीजय विजयजी श्री विनय विजयजी इन तीनों महाशयों के बनाये (श्रीकल्प किरणावली श्रीकल्प दीपिका श्रीमुखबेधिका इन तीनों वृत्तियों के) पर्युषणा सम्बन्धी पाठ ऊपर में लिखे हैं उसी में इन तीनों महाशयेांने, ज्ञात याने गृहस्थी लोगों की जानी हुई पर्युषणा दो प्रकारको लिखी है और अभिवर्द्धित संवत्सर में आषाढ चौमा
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