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( २० )
२० दिने तथा ५० दिने ज्ञात याने गृहस्थी लोगों की जानी हुई प्रसिद्ध पर्युषणा करे सेा यावत् कार्त्तिकतक उसी क्षेत्र में ठहरे और जघन्यसे 90 दिन, तथा मध्यम से १२० दिन और उत्कृष्ट १८० दिनका कालावग्रह होता है ।
और भी पर्युषणा सम्वन्धी भाष्य, चूर्णि, वृत्ति, समाचारी, तथा प्रकरणादि ग्रन्थोंके अनेक पाठ मौजूद हैं परन्तु विस्तार के कारण से यहां नहीं लिखता हूं । तथापि श्रीदशाश्रुत स्कन्ध सत्रकी चूणिं, श्रीनिशीथ चूर्णि, श्री बृहत्कल्प चूर्णि वगैरह कितनेही शास्त्रों के पाठ आगेप्रशांगोंपात लिखने में भी आवेंगे ।
अब मेरा सत्यग्रहणाभिलाषी श्रीजिनाज्ञा इच्छुक सज्जन पुरुषोंको इतनाही कहना है कि वर्त्तमानकाल में जैन पञ्चाङ्गके अभाव से लौकिक पञ्चाङ्गानुसार जिस मासकी वृद्धि होवे उसीके ३० दिनोंमें प्रत्यक्ष पने सांसारिक तथा धार्मिक व्यवहार सब दुनियांमें करने में आता है तथा समय, आवलिका, मुहुर्त्तादि शास्त्रोक्त कालके व्यतीतकी व्याख्यानुसार और सूर्योदयसे तिथि वारोंके परावर्तन करके दिनोंकी गिनती मिश्चय के साथ प्रत्यक्ष सिद्ध है तथापि उसीकी गिनती निषेध करते हैं सेा निष्केवल हठवादने संसारवृद्धिकारक उत्सूत्र भाषण रूप बाल जीवोंको मिथ्यात्वमें गेरमेके लिये वृथा प्रयास करते हैं इसलिये अधिक मासके दिनांकी गिनती पूर्वक उपरोक्त व्याख्याओंके अनुसार आषाढ़ चौमासीसे ५० दिने दूसरे श्रावण में वा प्रथम भाद्रपद में पर्युषणा करना सो श्रीजिना - ज्ञाका आराधनपना है। इसलिये मैं प्रतिज्ञा पूर्वक आत्मार्थियोंको कहता हूं कि वर्तमानिक श्रीतपगच्छके मुनिमuset वगैरह विद्वान् महाशय पक्षपात रहित हो करके विवेक बुद्धिसे उपरोक्त श्रीकल्पसूत्रकी व्याख्याओंका तात्प यर्थको विचारेंगे तो मासवृद्धि होनेसे अपने पूर्वजों की
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