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३२ । ६२ अर्थात् २० दिन ३० घटीका और ५८ पल प्रमाणे एक चन्द्रमास होता हैं इसको बारह चांद्रमासों से बारह गुणा करने से एक चन्द्रसंवत्सर में तीनसे चौपन संपूर्ण अहोरात्र और एक अहोरात्र के बासठ भाग करके बारह भाग ग्रहण करने से ३५४ । १२ । ६२ अर्थात् ३५४ दिन ११ घटीका और ३६ पल प्रमाणें एक चन्द्र संवत्सर होता हैं और जिस संवत्सरमें अधिकमास होता हैं उसीमें तेरह चन्द्रमास होने से अभिवर्द्धित नाम संवत्सर कहते हैं जिसका प्रमाण तीनसे तेंयाशी अहोरात्र और एक अहोरात्रिके बासठ भाग करके चौमालीस भाग ग्रहण करने से ३८३ । ४४ । ६२ अर्थात् ३८३ दिन ४२ घटीका और ३४ पल प्रमाणे एक अभिवर्द्धित संवत्सर तेरह चन्द्रमासोंकी गिनतीका प्रमाण से होता हैं इस तरहके तीन चंद्रसंवत्सर और दोय अभिवर्द्धित संवत्सर एसे पांच संवत्सरों में एक युग होता हैं अब एक युगके सर्व पर्वो की गिनती कहते हैं प्रथम चन्द्र संवत्सर के बारहमास जिसमें एक एक मामकी दोय होय पर्वणि होने से बारहमासों की चौवीश ( २४ ) पर्वणि प्रथम चन्द्र संवत्सर में होती हैं तैते ही दूसरा चन्द्र संवत्सर में भी २४ पर्वणि होती हैं और तीसरा अभिवर्द्धित संवत्सर में छवीश (२६) पर्वणि मासवृद्धि होने से तेरहमातोंकी होती हैं तथा चौथा चन्द्र संवत्सर में २४ पर्वणि होती हैं और पांचमा अभिवर्द्धितसंवत्सर में २६ पर्वणि होती हैं सो कारण उपरके दोनुं पाठमें कहा हैं इन सर्व पर्वो की गिनती मिलने से पांच संवत्सरोंकें एक युगकी एकसो चौवोश (१२४) पर्वणि अर्थात् पाक्षिक होती हैं यह १२४
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