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[८०] ताकत हो तो मुंबईकी पोलीश चौकी कोटवाली शास्त्रार्थ करनेको आवो, दूरसे कागज काले करके मनमानी आडी२ लंबी चौडी अठीसाठी बातें लिखकर भोलेजीवोंकोअरमानेका काम नहीं करना.
३-दोनोंको सब लेख सिद्ध करके बतलाने पडेंगे. उसमें झूठे को क्या आलोयणा लेनी, सो लिखो, वैशाखशुदी १३.”
न्यायरत्नजी आपकी धर्मवाद करनकी ताकातहोती तो इतने दिन मौनकरके क्यों बैठे. खैर !!! जैसी आपकी इच्छा. मगर याद रखना सभामे योग्य नियमानुसार शास्त्रार्थ न करना और अपने झूठे पक्षकी बात रखनेके लिये वितंडावाद करना या सामने न आकर सा. क्षि व प्रतिज्ञा बिनाही दूरसे कागज काले करते रहना और विषयांतर व कुयुक्तियोंसे उत्सूत्रप्ररूपणाकी आपकी दोनों कीताबें सच्ची बनाना चाहो सो कभी नहीं हो सकेगा, किंतु इसके विपाक भवांतरमै अवश्यही भोगनेपडेगे.मरीचि और जमालिसेभी आपका उत्सू. त्र बहुत ज्यादे है, आत्महित चाहते हो तो हृदयगम करके प्रायश्चि. त्त लेवो. उससे श्रेय हो. तथास्तु.सं०१९७५ ज्येष्ठ शुदी २ सोमवार हस्ताक्षर-मुनि मणिसागर.
इसप्रकार उपरमुजब लेख प्रकटहोनसे न्यायरत्नजी 'झूठेहै इस. लिये चुप लगाकर बैठे हैं ' इत्यादि बहुत चर्चा होने लगी, तब अपनी झूठी इजत रखनेके लिये १ हेडबील छपवाया उसमें लिखाथा कि, 'सभा हुईनहीं शास्त्रार्थ हुआनहीं फिर हारजीत कैसे होसके' इसके जवाबमें हमनेभी विज्ञापन १० वा छपवाकर उनके लेखका अच्छीतर. हसे खुलासा कियाथा, वो लेखभी नीचे मुजबहैः
विज्ञापन, नंबर १० । श्रीतपगच्छके न्यायरत्नजी शांतिविजयजीके हारका कारण, और उनकी अधिकमासके शास्त्रार्थकी
जाहिर सूचनाका उत्तर. १-न्यायरत्नजीलिखते हैं कि, 'सभाहुईनहीं शास्त्रार्थहुआनहीं फिर हारजीत कैसे होसके जवाब-आपकी हारका कारण विज्ञापन७वे में और ९वें में लिख चुका हूं. उसको पूरेपूरा लिखकर सबका उत्तर क्यों न दिया ? फिरभी देखिये-मैरोविज्ञापन नं. ७ वे के सब लेखोंका पूरेपूरा उत्तर नियत समयपर आप देसकेनहीं १, विज्ञापना ६ मुजब सभाके नियमभी मंजूर किये नहीं २,आजकाल वारंवार मुंबई में आ.
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