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गच्छके श्रीजिनपतिसूरिजी कृत श्रीसमाचारीग्रन्यमें ३० तपा श्रीसंघपकवहवृत्ति में ३१ और श्रीहर्षराजजी कृत श्रीसंघ. पटककी लघुवृत्तिमें ३२, और श्रीपूर्वाचायोंके बनाये तीन श्रीकल्पान्तरवाच्यों में ३५. इत्यादि पञ्चाङ्गीके अनेक शास्त्रों में आषाढ़ चौमासीसे ५० दिन जानेसे अवश्यमेव पर्यषणा करना कहा है उसीकेही अनुसार तथा श्रीपूर्वाचायोंकी आज्ञा. मुजब वर्तमानकालमें दो श्रावण होनेसे दूसरे प्रावणमें अथवा दो भाद्रपद होने से प्रथम भाद्रपदमें ५० दिने पर्यु. षणा करने में आती है इसी विषयकी पुष्टि के लिये पाठकवर्गको निःसन्देह होने के वास्ते शास्त्रों के थोडेसे पाठ भी लिख दिखाता हूं।
१ श्रीकल्पसूत्रके पृष्ठ ५३ से ५४ तकका पर्युषणा संबंधी पाठ नीचे लिखे मुजब जानो, यथा---
तेणंकालेणं तेणसभएणं समगवंमहावीरे वासाणं सवी सइराएमासे विकंते वासावासं पज्जोसवेइ ॥१॥ सेकेण?णं भंते एवं वच्चइ समणेभगवं महावीरे वासाणं सवीसह राए मासे विश कंते वासावासं पज्जोसवेइ । जउणं पाएणं, अगारीणं अगाराई,कडियाई, उक्कंपियाई, छन्नाई, लित्ताई, घटाई मट्ठाई, संधूपियाई, खाउ दगाई, खायनिटुमणाई. अप्पणी अढाए कहाई, परिभुत्ता इं, परिणामियाई भवंति ॥ सेतेगहोणं एवं वुच्चइ समणे भगवं मह वीरे वासाणं सबीसहराए मासे विरक्तते वासावासं पज्जोसवेइ ॥२॥ जहाणं समजगवं महावीरे वासाणं सवीसइ राए मासे विक्कते वासावासं पज्जोसवेइ । तहाणं गणहरावि वासाणं सवीसह राए मासेवक्ते वासावासं पज्जोसविंति ॥३॥ महाणं गणहरावि
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