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( ३ )
अभिप्रायसे विरुद्धहोकर के दूमरे श्रावण में ५० दिने श्रीपर्युषण पर्वका आराधन करने वालोंपर खूबही आक्षेपांकी बड़े जोरसे वर्षा करो और पञ्चाङ्गोके प्रत्यक्ष प्रमाणको उत्था पन किये और जो संपसेधर्मकार्य होते थे जिन्हें में विघ्नकाटो १० पृडकी पुस्तक प्रगट कराके कुसंपके वृक्ष को उत्पन्न कराया और तीसरे जैन पत्रवालेने भी इन्हीं केही अनुतार चल करके दूराग्रह के हठसे पर्युषणा विचार के लेखका गुजराती में भाषान्तर जेनपत्र के २३ वें अङ्कको आदिमें प्रगट करके भाषणों के फल विवाक प्राप्त करने के लिये और गच्छ दाग्रह के झगड़े को बढ़ाने के लिये श्रीजिनाशाके आराधक पुत्रका अनेक तरह से आक्षेपरूप कटुक वचन लिखके कुतंपके वृक्षको बढ़ानेका कारण किया ।
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इनदोनों महाशयोंके इसतरह के लेखोंको मैंने अवलोकन किये तो जिनाचा विरुद्ध एकान्त अपने गच्छ संबन्धी आग्रहके पक्ष तसे दूसरोंका मिथ्या दूषण लगानेवाले और आत्मार्थि भव्य जीवको श्रीजिनाज्ञाकाआराधन करने में विघ्न रूप मालून हुए तब इस विघ्नको दूर करने की इच्छा हुई इसलिये मोक्षाभिलाषी जिनाज्ञा इच्छक भव्य जीवोंको श्रीजिना - खाकी शुद्ध में दृढ़ करने के वास्ते और उत्सू भाषक गच्छदायिक हितशिक्षा के लिये शास्त्रानुसार तथा शास्त्र युक्तिपूर्वक श्रीपर्युषण पर्वका आराधन सम्बन्धी वर्त्तमानिक विवादका निर्णय करना उचित समझा सो करने तत्वान्वषि पुरुषोंको दिखाता हूं :
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श्रीगणधर महाराज कृत श्रीनिशीथ सूत्रमें १, श्रीपूर्वा'चार्यजीकृत श्री मिशीयसूत्र के लघु भाष्य में २, तथा वृद्धा
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